84 सालों से शौर्य गाथा रचता सीआरपीएफ
– 27 जुलाई को मनाया जा रहा है सीआरपीएफ का 84वां स्थापना दिवस आज
– 1939 में मध्यप्रदेश के शहर नीमच में हुई थी स्थापना
– देश का सबसे पुराना केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बल है
– सीमा पर चीनी हमले और संसद पर आतंकी हमले को नाकाम कर चुके हैं सीआरपीएफ के जवान
नई दिल्ली। सीआरपीएफ का 84वां स्थापना दिवस गुरुवार को मनाया जा रहा है। जिस तरह भारत की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय सेना के कंधों पर है, उसी तरह देश की आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा सीआरपीएफ के पास है। सीआरपीएफ न केवल आतंरिक सुरक्षा में अपना योगदान दिया है बल्कि बॉर्डर पर सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कई अहम लड़ाइयों में अपना सर्वोच्च बलिदान भी दिया है। जानिए सीआरपीएफ के 84 साल के इतिहास के बारे में –
सीआरपीएफ के जवान हमेशा देश की सुरक्षा के लिए तत्पर रहते हैं, भले ही फिर पाकिस्तानी घुसपैठिए हों या फिर चीन के हमलों को नाकाम करने की बात हो। सीआरपीएफ के जवानों ने हर बार अपनी वीरता दर्शाते हुए दुश्मनों को हार का स्वाद चखाया है। आजादी के बाद जब भारत के एकीककरण में मुश्किलें आई थी, तब भी सीआरपीएफ ने अपनी ताकत से प्रभावित हिस्सों को देश से बांधे रखा था। इसी प्रकार लद्दाख में 1959 में चीनी हमले को सीआरपीएफ ने नाकाम किया था।
1939 में हुई थी केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की स्थापना
दरअसल, आज की सीआरपीएफ का गठन आजादी के पहले ब्रिटिशों द्वारा मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर नीमच में साल 1939 में क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस के रूप में किया गया था। आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर क्राउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस की स्थापना की गई थी।
क्राॅउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस बना सीआरपीएफ
देश की आजादी के बाद 28 दिसंबर, 1949 को संसद के एक अधिनियम के तहत क्राॅउन रिप्रजेंटेटिव पुलिस का नाम बदलकर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल कर दिया गया। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने देश की बदलती जरूरतों के अनुसार, इस बल के लिए एक बहुआयामी भूमिका की कल्पना की थी। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल भारत का प्रमुख केंद्रीय पुलिस बल है और साथ ही सबसे पुराना केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बल भी है।
मणिपुर और पंजाब में आतंकवादियों को दिया था मुंहतोड़ जवाब
70 के दशक में जब उग्रवादियों ने त्रिपुरा और मणिपुर में शांति को भंग किया था। इस दौरान सीआरपीएफ के जवानों की तैनाती की गई थी। साथ ही 80 के दशक में पंजाब में बढ़ती आतंकी घटनाओं को देखते हुए वहां भी सीआरपीएफ को तैनात किया गया था।
संसद पर आतंकी हमला नाकाम किया था
आतंकवादियों द्वारा भारतीय संसद पर 13 दिसंबर, 2001 को किए गए हमले को भी सीआरपीएफ के बहादुर जवानों ने नाकाम कर दिया था। सीआरपीएफ और आतंकवादियों के बीच 30 मिनट तक चली गोलीबारी में पांचों आतंकियों को मार गिराया गया था। हालांकि, एक महिला सिपाही शहीद हो गई थीं जिन्हें 26 जनवरी, 2002 को अशोक चक्र प्रदान किया गया था।
सीआरपीएफ की वीरता और शौर्य की गाथा
– देश की आजादी के बाद भारत से अलग हो रहे राज्यों को एक करने में सीआरपीएफ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
– सीआरपीएफ ने वीरता दिखाते हुए जूनागढ़, कठियावाड़ जैसी रियासतों को भारत में शामिल कराया। बता दें कि इन राज्यों ने भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया था।
– इसके अलावा कच्छ, राजस्थान और सिंध सीमाओं में घुसपैठ और सीमा पार अपराधों की जांच के लिए इसकी टुकड़ियों को भेजा गया था।
– साथ ही सीआरपीएफ के जवानों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों के हमलों को भी नाकाम किया था।
– इसके बाद सीआरपीएफ को जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी सीमा पर तैनात किया गया।
– सीआरपीएफ ने 21 अक्टूबर 1959 को चीनी हमले को भी नाकाम किया था। हालांकि, इस दौरान दस जवानों ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था।
– उनकी याद में हर साल 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
– 1962 के चीनी आक्रमण के दौरान एक बार फिर सीआरपीएफ ने अपनी बहादुरी की मिसाल पेश की। उन्होंने अरूणाचल प्रदेश में भारतीय सेना को सहायता प्रदान की। इस दौरान सीआरपीएफ के 8 जवान शहीद हुए थे।
– वहीं, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी सीआरपीएफ ने भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था।
विदेशी जमीं पर भी लहराया परचम
सीआरपीएफ के जवानों ने केवल भारत में ही नहीं विदेशी धरती पर भी बहादुरी दिखाई है। सीआरपीएफ की 13 कंपनियों को आतंवादियों से लड़ने के लिए भारतीय शांति सेना के साथ श्रीलंका में भेजा गया था। इसमें महिलाओं की टुकड़ी को भी श्रीलंका भेजा गया था। इसके अलावा, सीआरपीएफ को संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के एक अंग के रूप में हैती, नामीबीया, सोमालिया और मालद्वीव भी भेजा गया था।
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