76 सालों में भारत ने तय किया भुखमरी से विश्वशक्ति बनने का रास्ता
-आजादी के बाद अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि
– भारत की साक्षरता दर 1947 में लगभग 12 प्रतिशत से बढ़कर आज 75 प्रतिशत हो गई है
– भारत की साक्षरता दर 1947 में 12 प्रतिशत थी जो आज बढ़कर 75 प्रतिशत हो गई है
नई दिल्ली। 15 अगस्त 2023, यानी आज पूरा देश 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। आजादी के इन 76 सालों ने देश ने बहुत कुछ पाया है, देखा है और खोया भी है। आज भारत प्रगति और विकास के मार्ग पर अग्रसर है, परंतु आजाद होने के बाद हमारा देश किस तरह आगे बढ़ा, किन-किन कठिनाइयों के बाद आज हमारा देश इस मुकाम पर पहुंचा है, यह हमें जानना जरुरी हैं। आज भारत जिस मुकाम पर पहुंच गया है, वहां तक पहुंच पाना आसान नहीं रहा होगा।
साल 1947 में जब देश आजाद हुआ था, तब भारत सदियों की गुलामी के बाद पहली बार एक स्वतंत्र देश बनकर उभरा था। भारत को स्वतंत्रा तो मिल गई थी, लेकिन कभी सोने की चिड़िया बोला जाने वाला हिंदुस्तान आजादी के बाद अब आर्थिक मोर्चे पर दुनिया में अपना वजूद पूरी तरह खो चुका था। हालत इतने भयावह थे कि अपनी जनता का पेट भरने के लिए भी भारत को अमेरिका से गेहूं उधार लेना पड़ रहा था, लेकिन इन 75 सालों में देश ने जो प्रगति की है उसनें सब कुछ बदल दिया है।
आज भारत दुनिया की 5वीं सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यस्था है और अगर इसी गति से हम आगे बढ़ते रहंे तो वह दिन दूर नहीं है, जब भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए देश ने एक लंबा संघर्ष किया है। आईए जानते हैं उन घटनाकर्मों को जिन्होंने देश को बदलने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
अकाल की भयावहता
1957-66 के दौरान भारत भयावह अकाल की स्थिति से गुजर रहा था। उड़ीसा, बंगाल, बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में लोगों को कई-कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता था। पूरे देश में सूखे के कारण अनाज का उत्पादन साल 1965-1966 में 7.5 मिलियन टन हुआ और एक साल बाद यह वार्षिक उत्पादन घटकर साल 1966-1967 में 7.2 मिलियन टन हो गया था। धीरे-धीरे इसमें और भी ज्यादा गिरावट आई और वार्षिक उत्पादन घटकर 4.3 मिलियन टन रह गया।
वहीं, 1960 के दशक में पूर्वी भारत में आए भयानक सूखे ने भारत के विकास पर फिर एक बार रोक लगा दी और इससे देश में गरीबी कई अधिक गुना बढ़ गई। देश की जनता को इस भयानक सूखे से बचाने के लिए देश की पश्चिमी देशों पर निर्भरता बढ़ गई। लेकिन कुछ सालों में खाद्य आत्मनिर्भरता की अत्यंत आवश्यकता को महसूस करते हुए हरित क्रांति की शुरुआत की गई। देश की कृषि नीतियों में बड़े बदलाव किए। ज्यादा से ज्यादा किसानों को हरित क्रांति से जोड़ने के लिए सरकार ने किसानों को उच्च फसल कीमतों की गारंटी दी। इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों जैसे आधुनिक आदानों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी दी गई।
अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि
भारत ने पड़े भयानक अकाल के बाद सरकार ने अपना पहला फोकस अनाज उत्पादन पर लगाया और कुछ सालों में देश ने अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली और यही स्वतंत्र भारत की सबसे पहली बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। चैंकाने वाली बात यह है कि जो देश साल 1950 से 1960 तक पश्चिमी देशों पर अनाज के लिए निर्भर था वहीं देश आज दुनियाभर में अनाज का एक महत्पूर्ण निर्यातक बन कर उभरा है।
भारत अब दालों और चावल का सबसे बड़ा उत्पादन करने वाला देश बन चुका है। दूसरे स्थान पर चीनी और कपास का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक। भारत ने साल 1950 में 54.92 मिलियन टन अनाज का उत्पादन किया था। लेकिन यही 2021-22 की बात करें तो इस साल भारत में रिकॉर्ड 314.51 मिलियन टन का अनाज उत्पादन किया है। सिर्फ एक साल यानी 2021-22 में उत्पाद किया गया अनाज बीते पांच सालो के औसत उत्पादन से 23.80 मिलियन टन ज्यादा है।
हिंदी चीनी भाई-भाई नारे के बाद 1962 में भारत-चीन युद्ध
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने भारत और चीन के रिश्तों को मजबूत करने के लिए हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा दिया था। लेकिन इसके विपरीत साल 1962 में चीन और भूटान की सीमा नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) में चीन के सैनिकों ने भयंकर गोलाबारी शुरू कर दी। यह इलाका आज का अरुणाचल प्रदेश है जिस पर चीन अपना हक होने का दावा करता है।
भारतीय सैनिकों की कमजोर तैयारियों का फायदा उठाते हुए लगातार हमले करते हुए चीनी सेना आगे बढ़ने लगी। अगले ही दिन चीनी सेना ने तवांग पर कब्जा कर लिया जो कि पास की घाटी में बसा हुआ बौद्ध मठों का शहर है। अपनी सीमा की सुरक्षा करते समय इस युद्ध में भारत के 1,383 सैनिक मारे गए और लगभग 1,700 सैनिक गायब हुए थे। वहीं, चीन के रिकॉर्ड के अनुसार भारत के 4,900 सैनिक मारे गए और 3,968 सैनिक जिंदा पकड़े गए।
जब चीन और भारत के बीच युद्ध हुआ था तब देशों की ताकत में बहुत ज्यादा फर्क भी नहीं था। उस वक्त चीन की जीडीपी भारत से करीब 12 प्रतिशत ज्यादा थी। युद्ध के बाद के सालों में दोनों ही देशों का एक्सपोर्ट घटा, लेकिन चीन ने साल 1980 के बाद पूरी ताकत के साथ सस्ते सामान और लेबर के जरिए दुनियाभर के बाजारों में अपनी पकड़ बढ़ानी शुरू कर दी। वहीं दूसरी तरफ भारत ने रक्षा बजट में वृद्धि की और देश में हथियारों का बड़े पैमाने पर आयात किया गया।
1971 का पाकिस्तान युद्ध
1947 में भारत से विभाजित हुए पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान अगले युद्ध के कारण बने। यह दोनों देश भारत से धर्म के आधार पर अलग हुए थे। वहीं, आजादी के बाद पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) पर जुल्म ढहाने शुरू किए। पाकिस्तानी सेना के बढ़ते उत्पीड़न के कारण बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर शरणार्थियों ने भारत में शरण ली। लगभग 1.2 करोड़ शरणार्थियों ने भारत में शरण ली थी।
इन शरणार्थियों के बोझ ने भारत पर आर्थिक बोझ बढ़ा दिया था। जिसके बाद भारत बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में ना सिर्फ शामिल हुआ, बल्कि पाकिस्तान को 1971 के युद्ध में करारी शिकस्त दी कि उसे पूर्वी पाकिस्तान से अपना अधिकार छोड़ना पड़ा। 16 दिसंबर 1971 के दिन भारतीय सेनाओं के पराक्रम और मजबूत संकल्प की बदौलत 24 सालों से दमन और अत्याचार सह रहे तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के करोड़ों लोगों को मुक्ति मिली थी।
इतना ही नहीं भारतीय सेना के अद्भुत पराक्रम से दुनिया के नक्शे पर 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का जन्म हुआ। इसके बाद से 16 दिसंबर को हर साल भारत विजय दिवस मनाता है।
देश को रखना पड़ा सोना गिरवी
आजादी के बाद साल 1950-51 में भारत के पास सिर्फ 1,029 करोड़ रुपये का ही विदेशी मुद्रा भंडार था, जो कि एक देश चलाने के हिसाब से बहुत की कम है। भारत में मंदी के इस दौर में एक वक्त ऐसा भी आया जब भारत आर्थिक तौर पर पूरी तरह कमजोर पड़ चुका था। भारत के पास विदेश से देश की जरुरत की चीजें आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं बची थी। उस समय देश को इस आर्थिक मंदी से बाहर निकालने के लिए देश ने एक ऐसा फैसला लिया जिसे आज भी आर्थिक सुधार के लिए लिया गया अब तक के फैसलों में सबसे अहम फैसला माना जाता है।
दरअसल, साल 1991 में जब भारत के पास इम्पोर्ट करने के लिए विदेशी करेंसी नहीं बची थी। उस वक्त भारत के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने देश का 67 टन सोना गिरवी रखकर 2.2 अरब डॉलर का कर्ज लेने का फैसला किया था। हालांकि उस गिरवी रखे सोने को छुड़ा लिया गया। इस फैसले और कर्ज को देश की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए एक महत्वूर्ण कदम माना जाता है। कर्ज मिलने के बाद भारत धीरे-धीरे अपना विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाता चला गया और आज भारत का यह खजाना 609.02 अरब डॉलर पर जा पहुंचा है।
1947 में देश की जीडीपी मात्र 2.7 लाख करोड़
आजादी के समय भारत की जीडीपी मात्र 2.7 लाख करोड़ रुपये थी और इस देश की जनसंख्या 34 करोड़ थी। वहीं, अब साल 2022 में भारत की जीडीपी लगभग 235 लाख करोड़ रुपये और जनसंख्या 1.3 अरब से ज्यादा है। भारत की साक्षरता दर 1947 में लगभग 12 प्रतिशत से बढ़कर आज 75 प्रतिशत हो गई है।
राजमार्गो के निर्माण से आई क्रांति
देशभर में गतिशीलता और विकास को और तेजी से बढ़ाने के लिए सड़क और हाईवे बनवाये गए, हवाई अड्डों और बंदरगाहों का विस्तार किया गया है। वहीं भारतीय रेलवे अब दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्कों में से एक है जिसमें 1,21,520 किमी ट्रैक और 7,305 स्टेशन शामिल हैं। इसी गतिशीलता और विकास के चलते पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 2001 में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का शुभारंभ किया था। जो दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता इन चार बड़े शहरों और व्यापार के मामले में प्रमुख शहरों को जोड़ने वाली सबसे बड़ी राजमार्ग परियोजना है।
इस योजना के अंतर्गत भारत में पहली बार हर दिन 37 किमी की सड़क का निर्माण हो रहा है। वहीं, इन सरे नेशनल हाईवेज को 6 से 12 लेन का बनाया जा रहा हैं। आजादी के वक्त यानी साल 1947 में भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 24,000 किमी थी जो अब 1,40,115 किमी हो गई है।
1947 में करीब 70 प्रतिशत देश था गरीब
आजादी के बाद साल 1947 में देश में साक्षरता दर केवल 12 प्रतिशत थी, जो कि साल 2022 में 80 प्रतिशत हो चुकी है। जब देश को आजादी मिली थी उस समय भारत के लगभग 70 प्रतिशत लोग बहुत ही गरीब की श्रेणी में थे, आज 20 प्रतिशत से भी कम आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। जहां उस वक्त देश में सिर्फ 5 प्रतिशत कृषि के लिए सिंचाई के साधन उपलब्ध थे, वहीं आज 75 सालों में ये बढ़कर 55 प्रतिशत हो गया है।
साल 1947 में भारत में सिर्फ 1,400 मेगा वॉट बिजली का उत्पादन होता था, यह उत्पादन अब बढ़कर 4 लाख मेगा वॉट से भी ज्यादा हो गया था और अब भारत बिजली निर्यात करने में भी सक्षम हैं। इसके अलावा 1947 में भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बिल्कुल ना के बराबर था, लेकिन आज फाइटर जेट, टैंक, मिसाइलें और रॉकेट जैसी तकनीक से लैस चीजें भी देश में ही बनाई जा रही हैं।
हमारा YOUTUBE चैनल-https://www.youtube.com/@VyasMediaNetwork