ईस्ट इंडिया कंपनी ने जारी किया 192 करोड़ रुपए का सिक्का
-4 किलोग्राम सोने से ढाला गया है यह सिक्का
-सिक्के में जड़े गए 6 हजार से ज्यादा हीरे
-सिक्के का नाम ‘द क्राउन कॉइन’
-8 सितंबर 2022 को हुआ था क्वीन एलिजाबेथ का निधन
-ईस्ट इंडिया कपंनी ने किया भारत पर 200 साल राज
लंदन। ब्रिटेन की पूर्व महारानी एलिजाबेथ-द्वितीय की पहली पुण्यतिथि पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक सिक्का जारी किया है। चैकाने वाली बात यह है की इस सिक्के की कीमत 192 करोड़ रूपए है। दरअसल इस खास सिक्के को 4 किलोग्राम सोने से ढाला गया है। वहीं इसमें 6 हजार 400 हीरे भी जड़े गए हैं। इस सिक्के का नाम ‘द क्राउन कॉइन’ रखा गया है।
सिक्के पर क्वीन एलिजाबेथ के कोट्स
बता दें कि 8 सितंबर 2022 को क्वीन एलिजाबेथ का 96 उम्र में निधन हुआ था। अब एक साल बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए द क्राउन कॉइन जारी किया। वहीं इस सिक्के के किनारों पर महारानी एलिजाबेथ-द्वितीय के कोट्स लिखे गए हैं। पहला कोट है-उम्र के साथ अनुभव आता है और अगर इसका सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह एक गुण हो सकता है। दूसरा कोट है- अपने पुराने मतभेदों को पीछे छोड़कर हम एक साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार हो सकते हैं।
बास्केट बॉल जितना सिक्का
इस ‘द क्राउन कॉइन’ का साइज बास्केट बॉल के बराबर है। इसका व्यास 9.6 इंच है। इसमें ब्रिटेन के दिवंगत सम्राट की तस्वीरें भी लगी हैं। इन तस्वीरों को प्रसिद्ध चित्र कलाकारों मैरी गिलिक, अर्नोल्ड माचिन, राफेल मैकलॉफ और इयान रैंक-ब्रॉडली ने बनाया है। वहीं, इस सिक्के को बनाने में भारत, जर्मनी, ब्रिटेन, श्रीलंका और सिंगापुर के कारीगरों को लगाया गया था। इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय मूल के सीईओ संजीव मेहता ने जारी किया है।
दुनिया का सबसे महंगा सिक्का
इस सिक्के को 192 करोड़ की कीमत के साथ अब तक का सबसे महंगा सिक्का बताया जा रहा है। इसके पहले डबल ईगल नाम के सिक्के को दुनिया का सबसे महंगा सिक्का माना जाता था। इस डबल ईगल की कीमत 163 करोड़ रुपए थी। इसे ऑगस्टस सेंट गॉडंस ने 1933 में डिजाइन किया था।
ईस्ट इंडिया कपंनी ने किया भारत पर 200 साल राज
24 अगस्त 1608 को ईस्ट इंडिया कपंनी का पहला जहाज सूरत के तट पर आया था। इसे ही ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन माना जाता है। 16वीं शताब्दी में अंग्रेजी साम्राज्य का सूरज डूबने ही वाला था। पुर्तगाल और डच लगातार अपने व्यापारिक साम्राज्य को फैला रहे थे। ब्रिटिशर्स केवल यूरोप तक ही सीमित थे और वहां भी उनको व्यापार में कोई खास फायदा नहीं हो रहा था।
उन्हें एक बड़े बाजार की जरूरत थी। जिसके बाद व्यापारियों ने इंग्लैंड की तत्कालीन महारानी से भारत में व्यापार करने की अनुमति मांगी। साल 1600 में एक कंपनी बनाई गई। कंपनी को मुख्य रूप से साउथ और साउथ ईस्ट एशिया में व्यापार करने के उद्देश्य से बनाया गया था, इसलिए कंपनी का नाम ईस्ट इंडिया पड़ा। बात दें कि ईस्ट इंडिया कंपनी 125 शेयरहोल्डर्स और 72 हजार स्टर्लिंग पाउंड की कैपिटल से कंपनी बनकर तैयार हो गई। कंपनी को रॉयल चार्टर प्राप्त यानी उसे ब्रिटेन के शाही परिवार का संरक्षण प्राप्त था।
इसके बाद ब्रिटिशर्स ने संसद के सदस्य और राजदूत सर थॉमस रो को राजपरिवार के शाही दूत के रूप में भारत भेजा। सर थॉमस रो 1615 में भारत आए और भारतीय राजाओं से मिले। अगले 3 साल में ही रो ने मुगल शासन से भारत में व्यापार के लिए शाही फरमान हासिल कर लिए थे। कंपनी के लिए अब व्यापार के रास्ते पूरी तरह साफ थे।
कंपनी ने तेजी से भारत में अपने पैर पसारना शुरू कर दिया। हर बड़े बंदरगाह पर कंपनी ने अपनी फैक्ट्री स्थापित की। 1646 तक ही कंपनी देशभर में 23 फैक्ट्रियां स्थापित कर चुकी थी। मुगल साम्राज्य की कमजोरियों का फायदा उठाकर धीरे-धीरे कंपनी ने शासन-प्रशासन में भी अपना दखल बढ़ाना शुरू कर दिया और एक व्यापारिक कंपनी से अलग प्रशासनिक कंपनी भी बन गई।
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