132 करोड़ लीटर रेडियोएक्टिव पानी प्रशांत महासागर में छोड़ेगा जापान
-जांच के बाद यूएन एजेंसी से मिली हरी झंडी
-साउथ कोरिया और चीन समेत कई एशियाई देश विरोध में
–1000 टैंकों में स्टोर किया गया है रेडियोएक्टिव पानी
-2011 में आई सुनामी की वजह से फुकुशिमा के न्यूक्लियर प्लांट हुआ था ठप
टोक्यो। बहुत जल्द ही जापान अपने बंद पड़े और खराब हो चुके न्यूक्लियर प्लांट में मौजूद ट्रीटेड रेडियोएक्टिव पानी को प्रशांत महासागर में छोड़ने वाला है। यूएन के न्यूक्लियर वॉचडॉग से जापान को इस काम के लिए मंजूरी भी मिल गई है। इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (आईएईए) के चीफ राफेल ग्रौसी ने बयान में बताया कि रेडियोएक्टिव पानी को छोड़ने का जापान का प्लान सेफ्टी स्टैंडर्ड्स के अनुसार सही है। आईएईए के चीफ राफेल ग्रौसी मंगलवार को जापान पहुंचे, जहां उन्होंने प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा से मिलकर इस प्लान का आखरी सेफ्टी रिव्यू किया। परंतु मंजूरी मिलने के बाद भी जापान में तटीय इलाकों में रह रहे लोग और कई एशियाई देश इसका विरोध कर रहे हैं।
एक हफ्ते में मिल सकता है परमिट
जापान सरकार ने एस परियोजना की घोषणा 2021 में की थी। तब कहा गया था कि ये काम अगले 2 सालों में शुरू हो जाएगा। दरअसल, जापान की रेगुलेटरी बॉडी ने 30 जून को ही अपना इंस्पेक्शन पूरा कर लिया था और बस यूएन एजेंसी से हरी झंडी मिलने का इंतजार था। वहीं अब बताया जा रहा है कि यूएन की जांच के बाद प्लांट की देखभाल कर रही कंपनी टेप्को को एक हफ्ते के अंदर पानी छोड़ने का परमिट मिल सकता है। पानी को समुद्र में एक किलोमीटर के पाइप के जरिए छोड़ा जाएगा और इसे पूरी तरह से छोडे जाने में कई दशकों का समय लग सकता हैं।
क्या पानी में अभी भी मौजूद है रेडियोएक्टिव पदार्थ
वहीं इस बात पर सफाई देते हुए जापान के विदेश मंत्रालय ने बताया है कि पानी को महासागर में छोड़ने से पहले साफ कर दिया गया है। हालांकि, कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पानी में अभी भी ट्रीटियम मौजूद है। इसी बात पर कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि ट्राइटियम एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है, जिसे पानी से अलग करना मुश्किल है। इसके संपर्क में आने पर ज्यादा नुकसान नहीं होता है, लेकिन अगर ये बड़ी मात्रा में किसी के शरीर से संपर्क करता है तो कैंसर जैसी बीमारियां होने की आशंका होती है।
अब तक ऐसे स्टोर किया गया था रेडियोएक्टिव पानी
इस बंद पड़े न्यूक्लियर प्लांट को संभालने वाली कंपनी टोक्यो इलेक्ट्रिक पाॅवर (टेप्को) ने बताया कि प्लांट में मौजूद पानी के ट्रीटमेंट के बाद उसे एक हजार टैंकों में स्टोर किया गया है। वहीं जापान इस पानी से निजात इसलिए पाना चाहता है ताकि इस न्यूक्लियर प्लांट को नष्ट किया जा सके।
सुनामी के कारण न्यूक्लियर प्लांट का कूलिंग सिस्टम हुआ था ठप
जापान में मार्च 2011 में आई सुनामी की वजह से फुकुशिमा के न्यूक्लियर प्लांट का कूलिंग और इलेक्ट्रिसिटी सिस्टम ठप हो गया था। गर्मी बढने की वजह से वहां मौजूद तीनों रिएक्टर्स के कोर पिघल गए, जिसके चलते काफी ज्यादा मात्रा में रेडिएशन फैला था।
विरोध में हैं एशियाई देश
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, 1940 के दशक में साउथ पैसिफिक में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों ने एक के बाद एक कई न्यूक्लियर टेस्ट किए थे। इसके साइड इफेक्टस वहां के आईलैंड पर रहने वाले लोग अब तक भुगत रहे हैं। हालांकि, न्यूक्लियर टेस्ट करने और न्यूक्लियर रिएक्टर्स को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किया पानी महासागर में छोड़ने में काफी फर्क है। उसके बावजूद इसके असर को नकारा नहीं जा सकता है। 2011 की सुनामी के बाद साउथ कोरिया जैसे कई देशों ने सुरक्षा के लिहाज से फुकुशिमा से सीफूड और दूसरी खाने की चीजों के इम्पोर्ट पर रोक लगा दी थी।
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