बांग्लादेश में शेख हसीना के खिलाफ सड़क पर उतरे हजारों लोग
– बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने फिर से चुनाव कराने की मांग को लेकर निकाली रैली
– राजधानी ढाका में 13 किलोमीटर लंबा मार्च निकाला
– बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना से इस्तीफा मांगा
– हिंसा में विपक्षी दल के एक कार्यकर्ता की मौत
– शेख हसीना 2009 से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ बुधवार को हजारों की तादाद में लोग सड़कों पर उतरे। ढाका में लोगों ने 13 किलोमीटर लंबा मार्च निकाला। वहां विपक्ष की बुलाई रैली में पहुंचे इन लोगों ने हसीना से इस्तीफे की मांग की। ढाका समेत 16 जगहों पर रैली निकाली गई। इस दौरान हुई हिंसा में विपक्षी दल के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई, जबकि सैकड़ों लोग घायल हो गए।
लोकल मीडिया के मुताबिक बांग्लादेश के मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने फिर से चुनाव कराने की मांग को लेकर इन रैलियों का आयोजन किया था। बांग्लादेश में विपक्ष काफी समय से सत्ताधारी पार्टी (बांग्लादेश आवामी लीग) पर करप्शन और मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगा रहा है। बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने शेख हसीना से तुरंत पद छोड़ने, संसद को भंग करने और देश में लोकतंत्र बहाल करने में मदद के लिए एक अंतरिम सरकार को सत्ता सौंपने की मांग की है।
रूलिंग पार्टी पर विपक्षी कार्यकर्ता को मारने का आरोप
ढाका समेत 16 जगहों पर रैली में हिंसा हुई। इस दौरान बीएनपी के स्पोक्सपर्सन जहीर उद्दीन स्वपन ने कहा कि रूलिंग पार्टी की स्टूडेंट विंग के एक कार्यकर्ता ने हमारी पार्टी के साजिब हुसैन को गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई।
बांग्लादेश में 2024 में होना है चुनाव
बांग्लादेश में जनरल इलेक्शन जनवरी 2024 में होगा। प्राइम मिनिस्टर शेख हसीना वाजेद ने इसका ऐलान किया है। हसीना 2009 से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं और लगातार पांचवीं बार प्रधानमंत्री पद की दावेदार हैं। हसीना ने मुख्य विपक्षी दल बीएनपी पर आरोप लगाया है कि उसके नेता मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए मुल्क का पैसा दूसरे देशों में भेज रहे हैं और इसमें सबसे बड़ा नाम बीएनपी की नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान का है।
कैसी है बांग्लादेश की संसद?
– बांग्लादेश की संसद को ‘जातियो संगसद’ या हाउस ऑफ द नेशन कहा जाता है। इसकी नई बिल्डिंग 15 फरवरी 1982 में तैयार हुई।
– यह 200 एकड़ में बनी है। संसद में कुल 350 सीटें हैं और इनमें से 50 महिलाओं के लिए रिजर्व हैं।
– दुनिया में बांग्लादेश ही एकमात्र ऐसा मुस्लिम मेजॉरिटी नेशन है, जिसने अपनी संसद में खास तौर पर महिलाओं के लिए सीटें रिजर्व रखी हैं।
– शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के पास 302 सीटें हैं। इसके बाद हुसैन इरशाद की जातिया पार्टी है। इसके पास 26 सीटें हैं।
– खालिदा जिया की पार्टी ठछच् के पास इस वक्त महज 7 सांसद ही हैं। संसद का कार्यकाल भारत की तरह ही पांच साल का होता है। इमरजेंसी में इसे बढ़ाया भी जा सकता है।
एलडीसी रैंक से बाहर निकलने का लक्ष्य
बांग्लादेश का लक्ष्य साल 2031 तक संयुक्त राष्ट्र के सबसे कम विकासशील देशों (एलडीसी) की रैंक से निकलकर उच्च-मध्यम आय वाला देश बनना है। हालांकि, हाल ही में आई विश्वबैंक की एक रिपोर्ट ने वास्तविक स्थिति की तरफ ध्यान दिलाया है। रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश का वित्तीय क्षेत्र कुछ विकृतियों का सामना कर रहा है, खासकर आर्थिक स्थिरता के रूप में। बांग्लादेश के लिए एक सुकूनदायक बात को भी रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है।
विश्व बैंक ने कहा है कि इस आर्थिक संकट को इसके दक्षिण एशियाई पड़ोसियों, पाकिस्तान और श्रीलंका जितना गंभीर और तत्काल नहीं माना जा सकता है। विभिन्न देशों की आर्थिक स्थिति पर नजर रखने वाली कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का ध्यान इस वक्त बांग्लादेश पर है। ऐसा इसलिए है कि छोटा देश होने के बावजूद बांग्लादेश में इतनी क्षमता है कि वो आर्थिक मोर्चे पर बेहतर कर सके। आर्थिक प्रगति और ऋण खर्च का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए अप्रैल 2023 में आईएमएफ ने ढाका का दौरा किया था।
इस दौरान आईएमएफ प्रतिनिधिमंडल ने भी देश में व्याप्त वित्तीय विकृतियों के संबंध में चिंता व्यक्त की थी। आईएमएफ ने कहा कि बांग्लादेश एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। बेहतर प्रदर्शन के बावजूद लगातार मुद्रास्फीति दबाव, वैश्विक वित्तीय स्थितियों की बढ़ी हुई अस्थिरता के कारण आर्थिक स्थिति गड़बड़ हुई है। आईएमएफ ने यह भी कहा कि प्रमुख उन्नत व्यापार भागीदारों में मंदी के कारण विदेशी मुद्रा भंडार और बांग्लादेश की मुद्रा श्टकाश् पर व्यापक असर पड़ रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से गुहार लगाई
भारत के तीन प्रमुख पड़ोसी देश पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश विकट आर्थिक संकट से ग्रस्त हैं। श्रीलंका में पिछले साल जुलाई में जिस तरह आम लोगों ने क्रांति की थी उसने वहां की विषम परिस्थितियों से पूरे विश्व को अवगत कराया था। श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन तक क्रांति की आग पहुंच गई थी। हालात यहां तक बिगड़ गए थे कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भाग जाना पड़ा था।
पाकिस्तान के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। पिछले साल ही दिसंबर महीने में बांग्लादेश भी कुछ ऐसे ही संकटों से घिर गया था। बांग्लादेश का लक्ष्य साल 2031 तक संयुक्त राष्ट्र के सबसे कम विकासशील देशों (एलडीसी) की रैंक से निकलकर उच्च-मध्यम आय वाला देश बनना है। हालांकि बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले साल नवंबर महीने में बांग्लादेश सरकार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से गुहार लगानी पड़ी थी।
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