विभाजन में मुस्लिम लीग और कांग्रेस बनी खलनायक
– 2 जून 1947 को रखी गई थी भारत को खंडित करने की नींव
– मुस्लिम लीग ने भारत को मजहब के नाम पर बांटा
– कांग्रेस ने स्वीकार किया विभाजन का प्रस्ताव
– विभाजन के नाम पर दस लाख लोग बलि चढ़ गए
– रातोंरात करोड़ो लोग दो देश बन गए
14 अगस्त 1947… यह वह तारीख है, जिसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। अखंड भारत के आजादी के इतिहास में 14 अगस्त की तारीख आंसुओं से लिखी गई है। इस दिन विभाजन के परिणामस्वरूप करीब डेढ़ करोड़ लोग रातोंरात बेघर हो गए। उन्हें रातों-रात पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। करीब दस लाख से अधिक लोग काल के गाल में समा गए। सबसे बुरा हाल महिलाओं का हुआ जिन्हें इस विभाजन की सबसे क्रूर कीमत चुकानी पड़ी। सैकडों महिलाओं का अपहरण और बलात्कार किया गया।
2 जून 1947 को दिल्ली के एक कमरे में करीेब दर्जन भर लोगों ने मिलकर करोड़ो लोगों का भविष्य लिखा। करीब डेढ़ दशक से मुूस्लिम लीग जिस पाकिस्तान की रट लगा रहीे थी वो कागज पर उनके सामने सच हो गया। सिर्फ दो हफ्तों में भारत के खंडित होने की योजना पर मुहर लग गई। भगवान राम के बेटे लव का बसाया लाहौर, ढाकेश्वरी माता का तीर्थ ढाका और गुरु नानकदेवजी का जन्म स्थान ननकाना दो टुकडों में बंट गया।
अंग्रेजों ने 1905 में किया था बंगाल का विभाजन –
अगर कोई इस विभाजन की योजना से अनभिज्ञ था वो थी भाारत की मासूम और निर्दोष जनता थी जिस पर विभाजन कहर बनकर टूटा। 1947 को अंग्रेजों द्वारा किया गया विभाजन देश का पहला विभाजन नहीं था। इसके पहले अंग्रेज 1905 में भी बंगाल का विभाजन कर चुके थे लेकिन उस विभाजन का पहले बंगाल में और फिर पूरे देश में इतना मुखर विरोध हुआ कि अंग्रेजों को 1911 में अपना फैसला वापस लेना पड़ा। विभाजन का जो काम अंग्रेज 1905 में नहीं कर पाए वो 1947 में करने में वे सफल हो गए।
1906 में हुआ मुस्लिम लीग का जन्म –
जो बात 1905 के बंगाल को 1947 के भारत से अलग बनाती है वो है कंाग्रेस पार्टी, मुस्लिम लीग और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध के बीच 1906 में मुस्लिम लीग का जन्म संयुक्त बंगाल के ढाका में हुआ था। बंग भग आंदोलन के बाद जन्मी मुस्लिम लीग ने 1909 में मार्ले मिंटो सुधार के नाम पर पृथक निर्वाचन प्रणाली मांग से शुरूआत करते हुए अगले 30 साल में अलग इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान के नाम पर भारत को मजहब के नाम पर बांट कर रख दिया।
1930 में अलग इस्लामिक राष्ट्र की रूपरेखा रखी –
1920 के तुर्की के खलीफा के समर्थन में चलाए गए कांग्रेस के खिलाफत आांदोलन ने मुस्लिम कटटरपंथियों को यकीन दिला दिया कि वे अपनी गैर जरूरी मांग पर भी कांग्रेस के नेतृत्व को मना सकते हैं। इसके बाद 1930 में अल्लामा इकबाल ने पहली बार मुस्लिम लीग के अधिवेशन मे अलग इस्लामिक राष्ट्र की रूपरेखा रखी। इकबाल की कल्पना के इस अलग इस्लामिक देश के लिए पाकिस्तान नाम सबसे पहले चैधरी रहमत अली ने प्रयोग किया।
पाकिस्तान अभी नहीं तो कभी नहीं नाम के पर्चे बांटे –
1933 के तीसरे गोलमेज सम्मेलन में चौधरी रहमत अली ने पाकिस्तान अभी नहीं तो कभी नहीं नाम के पर्चे बांटे और करीब सात साल बाद 1940 में लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने पहली बार पाकिस्तान नाम के अलग इस्लामिक देश का प्रस्ताव पास किया। इसके बाद मुस्लिम लीग ने 1947 में दस लाख लोगों की लाश पर चढ़कर एक अलग इस्लामिक देश बना लिया।
देश तोड़ने में भारत के कम्युनिस्ट भी शामिल रहे –
जिस भारत ने 1905 में बंगाल का विभाजन नहीं होने दिया वो भारत 1947 में भारत विभाजन नहीं रोक पाया क्योंकि कांग्रेस के जिन नेताओं पर मुस्लिम लीग के सामने खड़े होने की जिम्मेदारी थी उन्होंने अंत समय में बिना भारत के लोगों को विश्वास में लिए विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
देश तोड़ने के इस खेल में भारत के कम्युनिस्ट भी शामिल रहे। जब कम्युनिस्ट नेताओं ने भारत को 14 राष्ट्रों का समूह बताते हुए भारत विभाजन को मुस्लिम राष्ट्र के आत्मनिर्णय का अधिकार बता दिया।
सर रेड क्लीफ को सौंपी विभाजन की जिम्मेदारी –
जब देश का विभाजन तय हो गया तब सर रेड क्लीफ को भारत और पाकिस्तान की सरहद तय करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। रेड क्लीफ इससे पहले कभी भारत नहीं आया था। उन्हें भारत की सांस्कृतिक विरासत, सभ्यता, मूल्यों और तीर्थों के विषयों में कोई जानकारी नहीं थी। रेड क्लीफ ने तीन सप्ताह में तय कर लिया गया कि कौन सा हिस्सा पाकिस्तान कहलाएगा और कौन सा हिस्सा हिंदुस्तान।
सदियों से एक जैसे इतिहास, भाषा, बोली और खानपान लिए रह रहे लोग रातोंरात दो देश बन गए। इस विभाजन ने आगे चलकर पूर्वी पाकिस्तान में एक नए नरसंहार को जन्म दिया। शहर के शहर रातोंरात खंडहर में बदल गए। शहर दर शहर दंगे और आगजनी शुरू हो गई। वे लोग जो हवेलियों में रहते थे रातोंरात रिफ्यूजी बन गए।
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