राजनेता नहीं कवि बनना चाहते थे अटल बिहारी वाजपेयी
– कवीताओं के जरिए अहम मुद्दों पर रखते थे विचार
– पाकिस्तान में भी बनेे लोकप्रिय नेता
– भारत पाकिस्तान संबंधों को सुधारने का था संकल्प
– विरोधी भी अटलजी को पसंद करते थे
– अटलजी ने राजनीति में छोड़ी अमिट छाप
अटल बिहारी वाजपेयी राजनिती का जाना-माना नाम हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं की, अटल की असली रूची कवि बनने की थी। लेकिन जीवन में उनके लिए कुछ और ही लिखा था। काल के कपाल पर लिखने-मिटाने की मंशा रखने वाले अटल बिहारी ने कभी नहीं सोचा था कि वह राजनेता बनेंगे लेकिन ऐसा होने के पीछे उनकी वही कवि हृदय सरलता और वाक् पटुता सहायक बन गई, जो उनका सपना था।
अपने कई साक्षात्कारों में अटल बिहारी ने स्वीकार किया है कि वह कवि या पत्रकार होना चाहते थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने अंदर के कवि को हमेशा जिंदा रखा। उन्होंने इमरजेंसी और भारत पाकिस्तान संबंधों की पृष्ठभूमि पर कविताएं लिखीं।
दिल्ली के दरबार में कौरव का है जोर,
लोकतंत्र की द्रौपदी रोती नयन निचोर,
रोती नयन निचोर नहीं कोई रखवाला,
नए भीष्म द्रोणों ने मुख पर ताला डाला,
कह कैदी कविराय बजेगी रण की भेरी,
कोटि-कोटि जनता न रहेगी बनकर चेरी।
अटल और फारूख अब्दुल्ला के मिलते-जुलते विचार –
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने भी एक बार जिक्र किया था कि अटल ने उनसे पूछा कि कश्मीर मुद्दे का क्या समाधान हो सकता है। इस पर अब्दुल्ला बोले कि हम चाहते हैं कि बस दोनों देशों की सीमाएं इजी हो जाएं और लोगों का आरपार व्यवहार शुरू हो जाए।
इसी से समाधान निकलेगा। अटल ने सख्ती से इस पर सहमति जताई और कहा कि अब्दुल्ला साहब- मेरा भी तो यही मानना है। कश्मीर के लोगों को भारत के इस नायाब प्रधानमंत्री पर ही सबसे ज्यादा भरोसा भी हुआ करता था, ऐसा वहां के लोगों से बातचीत करके जाना जा सकता है।
कश्मीर मामले पर अटल का पत्रकार को प्रभावशाली जवाब –
जब, कश्मीर दौरे पर किसी पत्रकार ने अटल से पूछा कि वाजपेयी साहब, कश्मीर पर बात संविधान के दायरे में होगी या उससे बाहर। इस पर हाजिर जवाब वाजपेयी ने कहा, कश्मीर पर बात इंसानियत के दायरे में होगी। उनकी ईमानदारी उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग बनाती थी। कश्मीर मुद्दे पर वाजपेयी ने पूरी ईमानदारी बरती थी। राजनैतिक एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अगर साल 2004 में एक बार फिर वाजपेयी की सरकार बनती तो कश्मीर मुद्दे की तस्वीर कुछ और होती।
नवाज शरीफ ने कहा- पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं अटल –
पाकिस्तान से संबंध सुधारने की दिशा में अटल बिहारी वाजपेयी जी ने पुरजोर कोशिशें की। उन्होंने दिल्ली से लाहौर की बस सेवा शुरू की और खुद उस पर बैठकर पाकिस्तान गए थे।
इस यात्रा के दौरान पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ ने तो यहां तक कह दिया कि वाजपेयी साहब तो पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं। भारत-पाकिस्तान पर अटल की कविता इस प्रकार है….
भारत-पाकिस्तान पड़ोसी साथ-साथ रहना है।
प्यार करें या वार करें दोनों को ही सहना है।
तीन बार लड़ चुके लड़ाई कितना महंगा सौदा।
रूसी बम हो या अमरीकी खून एक बहना है।
जो हम पर गुजरी बच्चों के संग न होने देंगे।
जंग न होने देंगे।
कवि बनने के सपने पर राजनीति का वार –
अटल जी के जीवन में इस बात का मलाल हमेशा रहा कि वह कविता से दूर हो गए। उन्होंने कविता और राजनीति को लेकर कहा, मैं इसे अंतर्विरोध नहीं मानता। बचपन से मैंने कविता लिखना आरंभ किया। मैं पत्रकार बनना चाहता था।
मैंने पत्रों का संपादन भी किया लेकिन जब श्रीनगर के अस्पताल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हो गया तो मुझे राजनीति में आना पड़ा। राजनीति के रेगिस्तान में मेरी कविता की धारा सूख गई है।
मेरा कवि मेरा साथ छोड़ गया –
अटल जी ने कहा, कभी-कभी मैं फिर से कविता लिखने की कोशिश करता हूं लेकिन सच्चाई ये है कि मेरा कवि मेरा साथ छोड़ गया है और मैं पूरा राजनीतिक नेता बनकर रह गया हूं। मैं उस दुनिया में लौटना चाहता हूं लेकिन स्थिति वही है कि व्यक्ति कंबल छोड़ना चाहता है लेकिन कंबल व्यक्ति को नहीं छोड़ना चाहता। इस समय राजनीति को नहीं छोड़ा जा सकता लेकिन राजनीति मेरे मन का पहला विषय नहीं है। अभी इस समय इसे छोड़ना पलायन समझा जाएगा और पलायन नहीं करना चाहता।
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