भारतीय सेना की यूनिफाॅर्म में आजादी के बाद पहली बार बड़ा बदलाव
-सभी रेजिमेंट के अफसरों के लिए एक ही व्यवस्था
-टोपी से लेकर जूतों तक सब एकसमान
दिल्ली। भारतीय सेना के यूनिफाॅर्म में के बड़ा बदलाव होने जा रहा है। भारतीय सेना की ब्रिगेडियर और उससे ऊपर की सभी रैंक्स के अधिकारियों के लिए अब एकसमान वर्दी लागू की जाएगी। इस निर्णय को अधिकारियों के मूल कैडर और नियुक्ति के मसले से परे रखकर लिया गया है। इसका उद्देश्य भारतीय सेना में एक निष्पक्ष और न्यायसंगत संगठन के चरित्र को बल देना है।
यह निर्णय हाल ही में हुए सेना कमांडरों के सम्मलेन के दौरान लिया गया। वहीं इस संबंध में सेना ने आधिकारिक रूप से जानकारी देते हुए कहा है कि- यह निर्णय विस्तृत विचार-विमर्श और सभी पक्षों के साथ व्यापक सलाह के बाद लिया गया है।
सभी रेजिमेंट के अफसरों के लिए एक ही व्यवस्था
इस फैसले से अलग-अलग रेजिमेंट के अफसरों के लिए लागू अलग-अलग व्यवस्था को भी समाप्त किया जाएगा। इससे सेना के विभिन्न हथियारों, रेजीमेंटों और सेवाओं को दर्शाने वाले अलग-अलग वर्दी और साज-सामान पहनने वाले आधिकारियों की लंबे समय से चली आ रही प्रथा को समाप्त कर दिया गया है।
उदाहरण के लिए, पैराशूट रेजिमेंट के अधिकारी मेहरून रंग की टोपी पहनते हैं, जबकि पैदल सेना, बख्तरबंद कोर, लड़ाकू सहायता हथियारों और सेवाओं के अधिकारी हरे, काले और नीले रंग की टोपी पहनते हैं।
टोपी से लेकर जूतों तक सब एकसमान
भारतीय सेना में हर रेजिमेंट का अपना एक अलग ड्रेस कोड है, जैसे की गोरखा राइफल्स और राजपूताना राइफल्स जैसी रेजिमेंट्स के अधिकारी काले रैंक के बैज और बटन पहनते हैं। वहीं, अन्य रेजिमेंट्स पीतल रंग के रैंक के बैज और बटन पहनते हैं। यूनिफाॅर्म के बेल्ट भी अलग-अलग होते हैं और उन पर विशिष्ट रेजिमेंट्स के अधिकारी संबंधित प्रतीक चिन्ह होते हैं।
किन अधिकारियों पर लागू होगा यह नियम
रक्षा विभाग के सूत्रों से पता चला है कि नए बदलाव में फ्लैग रैंक यानी की ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के वरिष्ठ अधिकारियों के हेडगियर, शोल्डर रैंक बैज, गोरगेट पैच, बेल्ट और जूते अब एकसामान होंगे। बदलाव लागू होने के बाद यह अधिकारी कोई भी डोरी और थैली बेल्ट नहीं पहनेंगे।
हालांकि, इस बदलाव से कर्नल और उससे नीचे के रैंक के अधिकारियों द्वारा पहनी जाने वाली वर्दी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सूत्रों ने इसका कारण बताते हुए कहा कि हथियारों या रेजिमेंट या सेवाओं के भीतर विशिष्ट पहचान के साथ यह मान्यता पद में छोटे रैंक और फाइल्स के लिए आवश्यक है, ताकि सौहार्द्र, एस्प्रिट डे कोर और रेजिमेंटल लोकाचार को और मजबूत किया जा सके।
कैसी होगी नई वर्दी
आम वर्दी में गहरे जैतून के हरे रंग की बैरेट, बकल पर भारतीय सेना के प्रतीक चिन्ह के साथ सिंगल पीस बेल्ट और बिना बैंकिंग के पीतल के रैंक बैज शामिल होंगे। कुछ रेजिमेंटों के अधिकारियों द्वारा पहनी जाने वाली टोपी के बजाय, अधिकारियों को अपनी औपचारिक पौशाक के हिस्से के रूप में काली टोपी पहनना होगी।
इसलिए होती है यूनिफोर्म पर डोरी
सेना में ध्वज-रैंक के अधिकारियों की ड्रेस जब आप ध्यान से देखेंगे तो आपको मालूम चलेगा कि उनके कंधे पर एक डोरी बंधी होती है इस डोरी या रस्सी को लैनयार्ड कहा जाता है। अब ध्वज-रैंक के अधिकारी अपनी नई ड्रेस पर कोई डोरी नहीं पहनेंगे। आपको बता दें लैनयार्ड का पहली बार इस्तेमाल 15वीं शताब्दी के अंत में हुआ था।
इसका इस्तेमाल सबसे पहले फ्रांसीसी सैनिकों और उनके जहाज पर काम करने वाले कर्मचारियों द्वारा किया गया था। कहा जाता है कि उस दौरान इसकी मदद से सैनिक लड़ाई के दौरान अपने हथियार को सुरक्षित रखते थे। सबसे खास बात की जिस लैनयार्ड की बात हम कर रहे हैं, उसकी उत्पत्ति फ्रांसीसी भाषा के शब्द लैनियर से हुई है। इसका मतलब पट्टा या स्ट्रैप होता है।
क्यों लिया गया यह फैसला?
एक आधिकारिक सूत्र के अनुसार रेजिमेंट की सीमाओं से परे, वरिष्ठ नेतृत्व के बीच सेवा मामलों में सामान्य पहचान और दृष्टिकोण को बढ़ावा देने और मजबूत करने के लिए यह निर्णय लिया गया है। इसी के चलते भारतीय सेना ने ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों के लिए एक समान वर्दी अपनाने का फैसला लिया गया है।
फ्लैग रैंक अधिकारियों के लिए नहीं होती रेजिमेंटल सीमाएं
मेजर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल और जनरल सहित ब्रिगेडियर स्तर और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों की रेजिमेंटल सीमाएं नहीं होती हैं। भारतीय सेना में, ब्रिगेडियर और ऊपर के अधिकारी वे होते हैं जो पहले से ही सेना की टुकड़ियों, बटालियनों की कमान संभाल चुके होते हैं और ज्यादातर मुख्यालय या प्रतिष्ठानों में तैनात होते हैं।
ऐसे पहचानें किसी अधिकारी की रैंक
यह फैसला लिए जाने से पहले तक अलग-अलग अधिकारी अपनी रैंक के हिसाब से सभी की ड्रेस अलग-अलग होती थी। वहीं ब्रिगेडियर और उससे ऊपर की रैंकों को चिन्हित भी अलग-अलग तरीके से किया जाता है। आइए जानते हैं इसके बारे में…….
लेफ्टिनेंट – भारतीय सेना के कमीशन किए गए अधिकारियों की सबसे छोटी पोस्ट। कोई भी रिक्रूट सबसे पहले एनडीए या आईएमए में कोर्स करके लेफ्टिनेंट ही बनता है। उसकी वर्दी पर कंधे पर लगे बैज पर दो तारे होते हैं। ऊपर दिख रहा भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह बैज का बटन होता है। वह हर अधिकारी की वर्दी पर दिखता है।
कैप्टन – लेफ्टिनेंट प्रमोशन पाकर या दो साल पूरा करने पर कैप्टन बनता है। इस अधिकारी की वर्दी पर कंधे पर लगे बैज में तीन सितारा होता है।
मेजर – 6 साल काम करने, भाग बी की परीक्षा की मंजूरी के बाद या प्रमोशन लेकर आने वाले अधिकारियों को मेजर की पोस्ट दी जाती है। इनके कंधे पर सिर्फ भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह होता है।
लेफ्टिनेंट कर्नल– भारतीय सेना में 13 वर्ष या भाग डी की परीक्षा की मंजूरी या प्रमोशन के बाद लेफ्टिनेंट कर्नल की पोस्ट दी जाती है। इनके कंधे पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह और एक तारा होता है।
कर्नल – कर्नल या उससे ऊपर की चयन से होता है। 15 साल की कमीशन्ड नौकरी चयन के लिए और 26 साल की कमीशन्ड नौकरी टाइम-स्केल प्रमोशन के लिए चाहिए होता है। इनके कंधे पर दो तारे और भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह बना होता है।
ब्रिगेडियर – पोस्ट चयन से मिलता है। 25 वर्ष की कमीशन्ड नौकरी जरूरी। कंधे पर त्रिकोणीय गठन में तीन तारे बने होते हैं।
मेजर जनरल – पोस्ट चयन से मिलता है। 32 साल की कमीशन्ड नौकरी जरूरी। कंधे पर एक तारा, बैटन और सैबर एकदूसरे को क्रॉस करते हुए दिखते हैं।
लेफ्टिनेंट जनरल – 36 साल की कमीशन्ड नौकरी और चयन से मिलता है पद। इसी पद के अधिकारियों को सेना का उप प्रमुख पद दिया जाता है। इनके कंधे पर राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के नीचे एक-दूसरे को क्रॉस करते हुए बैटन और सैबर होते हैं।
जनरल – भारतीय सेना का सबसे ऊंचा एक्टिव पोस्ट। इनके कंधे पर राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के साथ एक सितारा और एकदूसरे को क्रॉस करते हुए बैटन और सेबर होते हैं।
फील्ड मार्शल – भारतीय सेना में आज तक दो ही फील्ड मार्शल हुए हैं। एक केएम करिअप्पा और दूसरे सैम मानेकशॉ। इनके कंधे पर शेर का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह और उसके नीचे कमल के फूलों के घेरे में क्रॉस बैटन और सैबर होता है।
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