बिखरने लगा चीन का 40 साल से जारी विकास माॅडल
– दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को लगी सेंध
– चीन बहुत धीमी वृद्धि के युग में कर रहा है प्रवेश
-बीजिंग ने भी माना कि देश की अर्थव्यवस्था फिसल रही
बीजिंग। दुनिया पर छा रहे मंदी के बादल अब चीन पर भी गहराने लगे हैं। एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अब गिरावट के दौर में प्रवेश कर रही है। अमेरिका के एक प्रमुख वित्तीय प्रकाशन वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कहा है कि चीन की अर्थव्यवस्था अब गहरे संकट में दिखाई दे रही है और लगभग 40 साल से जारी विकास का उसका सफल मॉडल अब बिखर गया है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया और कहा- अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चीन बहुत धीमी वृद्धि के युग में प्रवेश कर रहा है, जो प्रतिकूल जनसांख्यिकी और अमेरिका व उसके सहयोगियों के साथ बिगड़ते रिश्तों के कारण ज्यादा बदतर हो गया है। ऐसा कर चीन अपने विदेशी निवेश और व्यापार को खतरे में डाल रहा है। चीन में यह आर्थिक कमजोरी लंबे समय तक जारी रह सकती है, जो देश को बड़ी मुश्किलों में ला सकती है।
इसी बीच बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स ने भी अपने आंकड़े जारी करते हुए बताया कि 2012 में चीनी सरकार और राज्य के मालिकी वाली कंपनियों का कुल ऋण चीन की जीडीपी का 200 प्रतिशत से कम था, लेकिन यही आंकड़ा 2022 तक चीन के जीडीपी का लगभग 300 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इन आकडों से स्पष्ट है की चीन अब अमेरिकी के कुल ऋण स्तर को भी पार कर चुका है।
बीजिंग ने माना देश की अर्थव्यवस्था फिसल रही
बीजिंग के सत्ता में बैठे वरिष्ठ अधिकारियों ने भी माना है कि पिछले दशकों का देश का विकास मॉडल अपनी चरम सीमा तक पहुंच गया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल में कहा गया है कि पिछले साल पार्टी नेताओं को संबोधित करते हुए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आर्थिक गतिविधियों के विस्तार के लिए निर्माण कार्य के उधार पर निर्भर रहने के कारण अधिकारियों पर निशाना साधा था।
राष्ट्रपति जिनपिंग ने चेतावनी देते हुए कहा, कुछ लोगों का मानना है कि विकास का मतलब परियोजनाओं में निवेश करना और निवेश बढ़ाना है। वहीं चीन की कुछ वित्तीय अखबारों ने लिखा है कि जिनपिंग और उनके मंत्रिमंडल ने अब तक देश के पुराने विकास मॉडल से दूर जाने के लिए बहुत कम काम किया है।
चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने भी जारी किए आकड़े
देश के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने जून में कहा था कि 2023 की पहली छमाही में चीन की जीडीपी में सालाना 5.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं, पहली छमाही में चीन की जीडीपी 59.3 ट्रिलियन युआन (लगभग 8.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) तक पहुंच गई है। दूसरी तिमाही में देश की जीडीपी सालाना 6.3 प्रतिशत बढ़ी।
इस बीच, चीन ने भी सोमवार को इस साल दूसरी बार अपनी एक साल की ऋण प्रधान दर को 10 अंक घटाकर 3.55 प्रतिशत से 3.45 प्रतिशत कर दिया और अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि को पुनर्जीवित करने के लिए पांच साल की दर में कोई बदलाव नहीं किया, जो फिलहाल 4.20 प्रतिशत है।
जून में बढ़ी बेरोजगारी
मीडिया रिपोर्टस यह बताती है कि हाल के समय में चीन हर महीने बेरोजगारी का नया रिकॉर्ड बना रहा है। जून महीने के आंकड़े बताते हैं कि चीन में 16 से 24 साल के हर 100 युवाओं में करीब 21 लोग बेरोजगार हैं। इस एज ग्रुप में बेरोजगारी की दर जून महीने के दौरान बढ़कर 21.3 फीसदी पर पहुंच गई था। इससे पता चलता है कि चीन में युवाओं को नौकरी पाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। इस साल के शुरुआत से देखें तो पता चलता है कि जनवरी से ही हर महीने इस एज ग्रुप में बेरोजगारी की दर बढ़ते ही जा रही है।
सरकार नहीं बता रही आंकड़े
देश में बढ़ती बेरोजगारी के कारण हाल ही में चीन में सरकार को भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। चीन ने तेजी से बढ़ती बेरोजगारी के कारण हो रहे हाल को दुनिया से छुपाने के लिए युवाओं की बेरोजगारी के आंकड़े बताने वाली रिपोर्ट का प्रकाशन को भी बंद कर दिया। बताया जा रहा है कि जून में युवाओं की बेरोजगारी की दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाने के बाद सरकार ने नाकामी छिपाने के लिए यह कदम उठाया है।
बेरोजगारी के साथ डिफ्लेशन भी बन रहा है संकट
चीन में युवाओं की बेरोजगारी का यह संकट ऐसे समय आया है, जब चीन अप्रत्याशित तरीके से आए डिफ्लेशन की समस्या की भी मार खा रहा है। चीन में महंगाई की दर जुलाई महीने में कम होकर 0.3 फीसदी पर आ गया है। महंगाई में इस तरह की गिरावट की स्थिति को डिफ्लेशन कहा जाता है। डिफ्लेशन भी किसी देश के लिए बड़ी समस्या है, क्योंकि इसका मुख्य कारण देश में डिमांड का एकदम कम पड़ जाना होता है।
चीनी बाजार में मांग की कमी
यह स्थिति ऐसी है जिसमें चीनी बाजार में मांग नहीं बची है, ऐसे में सामानों के दाम में तेजी से गिरावट आई है और यही कारण है कि महंगाई दर शून्य के बेहद करीब पहुंच गई है। ऐसे में चीन की सरकार बाजार में मांग वापस से बढ़ाने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग कर रही है। अगर डिफ्लेशन की चुनौती से सरकार ने जल्द निजात नहीं पाया तो चीन की अर्थव्यवस्था पर इसका काफी बुरा असर हो सकता है और उसकी आर्थिक वृद्धि दर में भारी गिरावट आ सकती है, जिसके कारण चीन का वैश्विक दबदबा भी कमजोर पड़ने के पूरे आसार हैं।
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