फिडे चेस वर्ल्ड कप जितने से चुके प्रज्ञानानंदा
–फाइनल के टाईब्रेकर मुकाबले में 1.5-0.5 की से हारे प्रज्ञानानंदा
–पहली बार चैम्पियन बने मैग्नस कार्लसन
-12 साल की उम्र में प्रज्ञानानंदा बन गए थे ग्रैंडमास्टर
–पीएम नरेंद्र मोदी ने की हौंसला अफजाई
–फिडे चेस वर्ल्ड कप का साल 2000 से हो रहा आयोजन
अजरबैजान। देश के सबसे युवा इंटरनेशनल चेस खिलाड़ी रमेशबाबू प्रज्ञानानंदा का फिडे वर्ल्ड कप जीतने का सपना टूट गया है। 5 बार के वर्ल्ड चैम्पियन मैग्नस कार्लसन ने उन्हें फाइनल के टाईब्रेकर मुकाबले में 1.5-0.5 की बढ़त से हराया। टाईब्रेकर का पहला रैपिड गेम नॉर्वे के मैग्नस ने 47 मूव के बाद जीता था।
वहीं दूसरा गेम ड्रॉ रहा, जिसके कारण उन्हें एक गेम की बढ़त मिली और कार्लसन चैम्पियन बन गए। इससे पहले हुए क्लासिकल राउंड के दोनों गेम ड्रॉ खेले थे। अगर प्रज्ञानानंदा यह मुकाबला जीतते तो वह नया इतिहास रच डालते। फिडे वर्ल्ड कप का टाइटल 21 साल बाद कोई भारतीय जीतता। इससे पहले विश्वनाथन आनंद ने 2002 में इस चैम्पियनशिप में जीत हासिल की थी।
पहली बार चैम्पियन बने कार्लसन
मैग्नस कार्लसन ने फिडे वर्ल्ड कप का खिताब पहली बार जीता है। इससे पहले भारत के दिग्गज चेस खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद और लेवोन एरोनियन ने 2-2 खिताब अपने नाम किए हैं।
कैसा रहा प्रज्ञानानंदा का सफर
प्रज्ञानानंदा का जन्म 10 अगस्त, 2005 को चेन्नई में हुआ था। उनके पिता स्टेट कॉर्पोरेशन बैंक में काम करते हैं, जबकि मां नागलक्ष्मी गृहिणी हैं। उनकी बड़ी बहन वैशाली आर भी शतरंज खेलती हैं। प्रज्ञानानंदा को पहचान तब मिली जब उन्होंने मात्र 7 साल की उम्र में वर्ल्ड यूथ चेस चैम्पियनशिप जीत ली। तब उन्हें फेडरेशन इंटरनेशनल डेस एचेक्स (फिडे) मास्टर की उपाधि दी गई थी।
12 साल की उम्र में प्रज्ञानानंदा को ग्रैंडमास्टर घोषित कर दिया गया और वह सबसे कम उम्र में यह उपाधि हासिल करने वाले भारतीय बने। इस मामले में प्रज्ञानानंदा ने भारत के दिग्गज शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद का रिकॉर्ड तोड़ा। इससे पहले, 2016 में 10 साल की उम्र में वह यंगेस्ट इंटरनेशनल मास्टर बनने का खिताब भी अपने नाम कर चुके हैं। बता दें कि चेस में ग्रैंडमास्टर सबसे ऊंची कैटेगरी वाले खिलाड़ियों को कहा जाता है। इससे नीचे की कैटेगरी इंटरनेशनल मास्टर की होती है।
पीएम मोदी ने की हौंसला अफजाई
फिडे वर्ल्ड कप में हार के बावजूद भी पीएम मोदी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट शेयर कर प्रज्ञानानंदा की हौंसला अफजाई करते हुए उन्हें उनके प्रदर्शन के लिए बधाई दी। उन्होंने लिखा कि- “फिडे विश्व कप में उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिए पूरे देश को प्रगनानंद पर गर्व है! उन्होंने अपने असाधारण कौशल का प्रदर्शन करते हुए, फाइनल में दुर्जेय मैग्नस कार्लसन को कड़ी टक्कर दी। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। उन्हें आगामी टूर्नामेंटों के लिए शुभकामनाएं।”
https://twitter.com/narendramodi/status/1694697761889734976
‘मां के कारण यहां तक पहुंच पाया हूं’ – प्रज्ञानानंदा
प्रज्ञानानंदा की सफलता के पीछे उनकी मां का बड़ा हाथ है। नागलक्ष्मी उनकी हर जरूरत का ध्यान खुद रखती हैं। फिर चाहे खाने-पीने की बात हो या फिर उनकी ट्रेनिंग की। दरसल, प्रज्ञानानंदा जहां भी खेलने जाते हैं उनकी मां उनके साथ जाती हैं। बता दें कि वे जहां भी जाती हैं प्रेशर कुकर साथ लेकर जाती हैं, ताकि प्रज्ञानानंदा को विदेश में भी घर जैसा पौष्टिक खाना खिला सकें।
उनका अपने बेटे के खेल के प्रति इतना समर्पण है कि जब तक प्रज्ञानानंदा मैच खेलते हैं वे हॉल के एक कोने में बैठी रहती हैं। फाइनल के सेकेंड क्लासिकल गेम में कार्लसन को ड्रॉ पर रोकने के बाद प्रज्ञानानंदा ने अपनी मां को लेकर कहा कि- मेरी मां मेरे साथ-साथ मेरी बहन के लिए भी बहुत बड़ा सहारा रही हैं और मैं आज मां के कारण ही यहां तक पहुंच पाया हूं।’
बहन से मिली चेस खेलने की प्रेरणा
आज देश का नाम रोशन करने वाले युवा चेस प्लेयर प्रज्ञानानंदा ने अपने करियर की शुरुआत अपनी बड़ी बहन वैशाली आर को देखकर की। दरअसल वैशाली भी 5 साल की उम्र से शतरंज खेल रही हैं और भी एक महिला ग्रैंडमास्टर हैं। एक इंटरव्यू में वैशाली ने बताया कि -जब मैं करीब 6 साल की थी, तो बहुत कार्टून देखती थी। मुझे टीवी से दूर करने के लिए माता-पिता ने मुझे शतरंज और ड्रॉइंग की क्लास में भेजा। वहीं बहन को चेस खेलता देख प्रज्ञानानंदा भी प्रेरित हुए और महज 3 साल की उम्र में शतरंज सीखने लगे। उन्होंने चेस की कोई क्लास नहीं ली और अपनी बड़ी बहन से खेलना सीखा।
कब हुई थी फिडे वर्ल्ड कप की शुरुआत
फिडे चेस वर्ल्ड कप का आयोजन पहली बार साल 2000 में किया गया था। इसके पहले 2 सीजन वर्ल्ड चेस चैम्पियनशिप से जुड़े नहीं थे और टूर्नामेंट राउंड रॉबिन फॉर्मेट में खेला जा रहा था। वहीं, 2003 और 2004 में प्रतियोगिता का आयोजन नहीं किया गया। उसके बाद से इस प्रतियोगिता का नियमित आयोजन हो रहा है। 2005 के बाद से वर्ल्ड कप का फॉर्मेट बदलते हुए इसे नॉकआउट फॉर्मेट में खेला जाने लगा। इतना ही नहीं, इसे वर्ल्ड चेस चैम्पियनशिप साइकल का हिस्सा भी बनाया गया है।
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