देशभर में मनाई गई महाकवि गोस्वामी तुलसीदास की 400वीं पुण्यतिथि
-बाल्यकाल में ही अनेक ग्रंथों, पुराणों को कर लिया था कंठस्थ
-‘श्रीरामचरितमानस’ के रचयिता हैं महाकवि तुलसीदास
-मुगल शासक अकबर की कैद में लिखी थी हनुमान चालीसा
-विश्वप्रसिद्ध हैं तुलसीदास जी की दस प्रकार की प्रामाणिक रचनाएं
हिन्दी साहित्य के सूर्य माने जाने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी भक्तिकाल के महान संत कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को तुलसीदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू संस्कृति तथा सभ्यता को चिरंजीव रखने में गोस्वामी जी का योगदान अतुलनीय माना जाता है। इस साल तुलसीदास जयंती बुधवार यानी 23 अगस्त को मनाई गई।
तुलसीदास जी का जन्म 1532 ई. में उत्तरप्रदेश के ‘सोरो’ ग्राम राजापुर में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बाल्यकाल से ही असाधारण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने बाल्यकाल में ही अनेक ग्रंथों, पुराणों को कंठस्थ कर लिया था। माता-पिता के जल्द निधन के बाद उनका जीवन साधु-संतों की संगति में व्यतीत हुआ।
स्वामी नरहरिदास से गुरु दीक्षा प्राप्त कर तुलसीदास जी के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया तथा वह एकमत से प्रभु श्रीराम के अनन्य उपासक बन गए और राम भक्ति में सराबोर रहते हुए जीवन व्यतीत करने लगे। वहीं तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली से हुआ था। वैवाहिक जीवन में अधिक आसक्ति के कारण कुछ समय वह भक्ति से अलग भी हुए, परन्तु कहा जाता है कि पत्नी के तानों ने उनका जीवन परिवर्तित कर दिया और वह राम नाम में लीन रहने लगे।
विश्व की सर्वोत्तम रचना ‘श्रीरामचरितमानस’ के हैं रचयिता
गोस्वामी तुलसीदास जी अपने जीवन काल में बहुत सी रचनाएं लिखी। उनकी दस प्रकार की प्रामाणिक रचनाएं विश्वप्रसिद्ध हुई। लेकिन ‘श्रीरामचरितमानस’ इनका गौरव ग्रंथ माना जाता है, जिसे साहित्य में महाकाव्य की संज्ञा दी गई है। लोक सामंजस्य की भावना को आधार बनाकर लिखा गया ‘श्रीरामचरितमानस’ भारत ही नहीं बल्कि विश्व की सर्वोत्तम रचना माना जाता है।
‘श्रीरामचरितमानस’ को संपूर्ण करने में तुलसीदास जी को लगभग तीन वर्षों का समय लगा। तुलसीदास जी ने इसे उस काल में रचित किया जब पूरे देश में इस्लामिक शासन था। ऐसे समय में भी गोस्वामी तुलसीदास जी ने निर्भीकतापूर्वक राम भक्ति में तल्लीन होकर इसकी रचना की।
तुलसीदास जी की अन्य रचनाएं
तुलसीदास जी ने ‘श्रीरामचरितमानस’ के अतिरिक्त ‘बरवै रामायण’, ‘रामलला नहछू’, ‘विनय पत्रिका’, ‘गीतावली’, ‘दोहावली’, ‘जानकी मंगल’, ‘पार्वती मंगल’ आदि रचनाएं भी रचीं, परन्तु सर्वाधिक प्रसिद्धि इन्हें ‘श्रीरामचरितमानस’ और ‘हनुमान चालीसा’ से प्राप्त हुई। दोहा, छन्द, सोरठा, चैपाइयों से अलंकृत ‘श्रीरामचरितमानस’ और ‘हनुमान चालीसा’ घर-घर में पढ़े जाते हैं और कई शुभ प्रसंगों पर इनका पाठ करने की परम्परा सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही है।
अकबर की कैद में लिखी हनुमान चालीसा
कहा जाता है कि तुलसीदास को हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा मुगल शासक अकबर की कैद से मिली थी। इतिहासकारों की मान्यता है कि मुगल शासक अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास जी को शाही दरबार में बुलाया और उनसे अपनी तारीफ में ग्रंथ लिखने को कहा। लेकिन तुलसीदास जी ने ग्रंथ लिखने से मना कर दिया। इस बात से नाराज होकर अकबर ने उन्हें कैद कर लिया और कारागार में डाल दिया।
वहीं कैद में तुलसीदास जी को प्रेरणा मिली की उन्हें इस संकट से केवल संकटमोचन हनुमान ही बाहर निकाल सकते हैं। तब 40 दिन कैद में रहने के दौरान तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की रचना की और उसका पाठ किया। इतिहासकार बताते हैं कि 40 दिन के बाद बंदरों के एक झुंड ने अकबर के महल पर हमला कर दिया, जिससे महल को बड़ा नुकसान पंहुचा। तब मंत्रियों की सलाह मानकर अकबर ने तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त कर दिया।
1623 ई. में हुआ निधन
तुलसीदास जी का निधन 1623 ई. में हुआ। कहा जाता है कि बानारस के अस्सी घाट पर राम-राम कहते हुए इन्होने अपना शरीर त्याग दिया। इस वर्ष गोस्वामी जी को श्रद्धांजलि रूप में समर्पित 400वां पुण्य स्मृति वर्ष भारतवर्ष में विभिन्न स्थानों पर भक्ति सम्मेलनों के माध्यम से आयोजित किया जा रहा है।