देवशयनी एकादशी आज: इस बार 5 महीनों तक योग निद्रा में रहेंगे भगवान विष्णु
– विष्णु मंदिरों में भगवान का अभिषेक कर नवीन वस्त्र पहनाए जाएंगे
– मंदिरों में संध्या आरती के बाद प्रभु को विधिपूर्वक शयन कराया जाएगा
– देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास की होगी शुरुआत
– महाआरती कर भगवान को लगाएंगे माखन-मिश्री का भोग
इंदौर। देवशयनी एकादशी 29 जून को मनाई जा रही है। इस बार भगवान विष्णु चार की जगह पांच माह (148 दिन) के लिए शयन पर जाएंगे। भगवान के शयन के बाद सृष्टि के काम का संचालन महादेव संभालेंगे। विष्णु मंदिरों में सुबह भगवान का अभिषेक कर नवीन वस्त्रधारण कराकर माखन मिश्री का भोग लगाया जाएगा। संध्या आरती के बाद प्रभु को विधिपूर्वक शयन कराया जाएगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरिशयनी एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी सभी एकादशियों में सबसे खास मानी जाती है क्योंकि इस एकादशी पर भगवान विष्णु पांच महीने की योग निद्रा के लिए क्षीर सागर में चले जाएंगे। गुरुवार को भगवान विष्णु क्षीर सागर में मां लक्ष्मी के साथ योग निद्रा में होंगे। फिर देवउठनी एकादशी तिथि पर यानी 23 नवंबर को उठ जाएंगे।
भगवान विष्णु के विश्राम के चलते पांच महीने के दौरान किसी भी तरह का कोई भी विवाह मुहूर्त और मांगलिक कार्य के लिए मुहूर्त नहीं होगा। इस बार अधिकमास के चलते भगवान विष्णु चार के बजाय 5 महीनों तक विश्राम करेंगे। इस एकादशी के साथ ही चातुर्मास आरंभ हो जाएगा।
पापों से मिलेगी मुक्ति, सिद्धियों की होगी प्राप्ति
व्रतधारी इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। इस व्रत को करने से पाप मिटते हैं और स्वर्ग की प्राप्ति होती है। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से आषाढ़ शुक्ल एकादशी की व्रत विधि और महत्व के बारे में पूछा तब श्रीकृष्ण ने बताया कि नारद जी ने भी इस व्रत के बारे में ब्रह्म देव से पूछा था तो उन्होंने कहा था कि यह व्रत सभी एकादशी में अच्छा माना जाता है क्योंकि इस व्रत को करने से कलयुग में रहने वाले जीवों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, जो इस व्रत को नहीं करता है, वह नरक में जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी को पद्मा एकादशी कहते हैं। इस दिन से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं, इसलिए इसे देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है।
चातुर्मास में भगवान विष्णु के पाताल लोक में रहने का कारण
कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने राजा बलि को वचन दिया था कि वह पाताल लोक में उसके साथ रहेंगे। राजा बलि ने अपना सबकुछ दान करने के बाद भगवान विष्णु से कहा था कि वह जब भी सोकर उठे तो साक्षात् आपके दर्शन हो और आप पाताल लोक की शत्रुओं से रक्षा करें। वचनबद्ध होने के कारण भगवान ने तुरंत वरदान दे दिया और राजा बलि के साथ ही पाताल लोक में रहने लगे।
बाद में माता लक्ष्मी राजा बलि के बंधन से मुक्त कराकर विष्णु जी को वैकुंठ लाईं लेकिन भगवान विष्णु ने बलि से कहा कि वे चार माह पाताल लोक में निवास करेंगे तब से चातुर्मास में हर साल भगवान विष्णु पाताल लोक में योग निद्रा में होते हैं।
राजा बलि ने वामन देव को कर दिया सबकुछ दान
वामन अवतार में भगवान विष्णु असुरों के राजा बलि के पास पहुंचते हैं और 3 पग भूमि दान में मांगते हैं। शुक्राचार्य राजा बलि को मना करते हैं. लेकिन राजा बलि अपने दान पुण्य के लिए बहुत लोकप्रिय थे। जब भी कोई उनके समक्ष कुछ भी वस्तु मांगता था, उसे दान में मिल जाती थी। वामन देव ने दो पग में पूरी पृथ्वी और स्वर्ग को नाप दिया। तीसरा पग बलि ने अपने सिर पर रख लिया। इससे प्रसन्न होकर वामन देव वास्तविक स्वरूप में आए।
भगवान विष्णु ने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा। उन्होंने भगवान से पाताल लोक में रहने और उन्हें सोकर उठते ही दर्शन देने का वरदान मांगा जिसे भगवान ने स्वीकार कर लिया।
ऐसे मुक्त हुए भगवान विष्णु
काफी समय बीत जाने के बाद जब भगवान विष्णु वैकुंठ लोक नहीं पहुंचे तो माता लक्ष्मी सहित सभी देवी और देवता चिंतित हो गए तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को उपाय बताया। उसको मानकर माता लक्ष्मी श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि के घर पहुंची और मदद की गुहार लगाई। उन्होंने पहले राजा बलि को राखी बांधी और पूरी बात बताई। उन्होंने बलि को भाई बनाकर कहा कि तुम भगवान विष्णु को पाताल लोक से वैकुंठ भेज दो।
माता लक्ष्मी को वचन देने के कारण राजा बलि ने भगवान विष्णु को उनके वरदान से मुक्त कर दिया तब भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि वे चातुर्मास में पाताल लोक में निवास करेंगे। राजा बलि ने कहा कि आप दोनों मेरे संबंधी हो गए हैं तो कुछ दिन और पाताल लोक में रहें और सेवा का मौका दें। रक्षाबंधन से लेकर धनतेरस तक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी पाताल लोक में रहे फिर वहां से वापस वैकुंठ लौट आए।
मंत्रों का लगातार करते रहें जाप
यह एकादशी सभी 24 एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसे में देवशयनी एकादशी के दिन सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें। फिर व्रत का संकल्प लेते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा के लिए सभी सामग्रियों को एकत्रित कर लें। एकादशी की पूजा सामग्रियों में गंगाजल, पीले रंग का फूल, माला, हल्दी, चंदन, पान, सुपारी और इलायची लें। इसके बाद भगवान विष्णु की आराधना करते हुए उन्हें पीली मिठाई को भोग लगाएं। इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें और मंत्रों का लगातार जाप करते रहें।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
सूर्यवंश में एक महान प्रतापी और सत्यवादी राजा मांधाता थे। वे एक चक्रवर्ती राजा थे। वे अपनी प्रजा की सेवा अपनी संतान की तरह करते थे। सब कोई खुशहाल था, लेकिन एक बार लगातार 3 साल तक उनके राज्य में वर्षा नहीं हुई जिसके कारण अन्न पैदा नहीं हुआ और अकाल पड़ गया। भोजन के साथ ही यज्ञ आदि के लिए भी अन्न नहीं था।
प्रजा अपने राजा के पास आकर इस अकाल से निपटने का आग्रह करती लेकिन राजा भी विवश थे। उनसे अपनी प्रजा का हाल देखा न गया। एक दिन वे सेना लेकर जंगल में निकल पड़े। वे कई ऋषियों और मुनियों के आश्रम में गए। काफी दिनों के बाद वे ब्रह्म देव के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में गए। अंगिरा ऋषि को प्रणाम करके राजा ने आने का प्रयोजन बताया।
राजा ने अंगिरा ऋषि से कहा कि अकाल के कारण उनके राज्य में हाहाकार मचा हुआ है। प्रजा अन्न और भोजन के लिए व्याकुल है। वर्षा न होने के कारण फसल नहीं हो रही है। आप इस संकट से बाहर निकलने का कोई उपाय बताएं। तब अंगिरा ऋषि ने कहा कि हे राजन! इस संकट से निकलने का सबसे उत्तम उपाय है कि तुम आषाढ़ शुक्ल एकादशी को पद्मा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करो।
इसके पुण्य प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी जिससे खुशहाली आएगी, प्रजा सुखी होगी और अन्न का संकट खत्म होगा. यह एकादशी व्रत करने से सभी प्रकार के उपद्रव शांत हो जाते हैं और सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इस व्रत को तुम अपनी पूरी प्रजा और मंत्रियों के साथ करो।
राजा ने अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया और वापस अपने नगर लौट आए। पद्मा एकादशी के दिन उन्होंने पूरी प्रजा और मंत्रियों के साथ इस व्रत को विधिपूर्वक किया। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से राज्य में अच्छी वर्षा हुई जिसके कारण फसलों की पैदावर अच्छी हुई। उनका राज्य फिर से धन और धान्य से परिपूर्ण हो गया। प्रजा सुखपूर्वक रहने लगी।
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