पूरे अंतरिक्ष में तिरंगा लहराने की तैयारी में इसरो
– 2031 तक के लिए इसरो के कई मिशंस हैं तैयार
– 23-24 अगस्त के आसपास चंद्रयान-3 कर सकता है लैंडिंग
– गगनयान मिशन के जरिए मानवों को अंतरिक्ष में भेजेगा इसरो
– नासा के साथ मिलकर इसरो बना रहा है नए सेटेलाइट
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 14 जुलाई को चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक लाॅन्च किया था। इसरो ने कहा है कि चंद्रयान-3 अंतरिक्ष में सुचारू रूप से घूम रहा है और अगस्त के अंत तक चंद्रमा की सतह पर उतर जाएगा। इसरो ने मंगलवार को चंद्रयान-3 की कक्षा बढ़ाने की तीसरी प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की। अगली फायरिंग बुधवार को दोपहर 2 से 3 बजे के बीच की जाएगी।
अगले दो हफ्तों में, इसरो अंतरिक्ष यान को धीरे-धीरे लंबे दीर्घवृत्त में बाहर की ओर घुमाने के लिए पांच से छह कक्षा की वृद्धि का संचालन करेगा। प्रोपलशन मॉड्यूल की गति तब तक लगातार बढ़ती रहेगी जब तक कि यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त होने के लिए आवश्यक गति तक नहीं पहुंच जाता, जिससे यह लूनर ट्रांसफर ट्रेजेक्टोरी (एलटीटी) में प्रवेश करने और चंद्रमा की ओर एक रास्ते पर निर्धारित होने में सक्षम नहीं हो जाता।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लैंडिंग 23-24 अगस्त के आसपास हो सकती है, जिससे यात्रा तीन सप्ताह की अवधि में पूरी होगी। इस मिशन के सफल समापन से भारत उन देशों की सूची में शामिल हो जाएगा, जिन्होंने चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग हासिल की है, जिसमें अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ और हाल ही में चीन भी शामिल हुआ है। लेकिन, इतना ही नहीं, बताया जा रहा है कि चंद्रयान-3 के सफल लैंडिंग के बाद भारत ने कई और उपक्रमों के लिए कमर कस रखी है।
आईए, जानते हैं कौन-कौन से मिशन के लिए तैयार है इसरो-
पहला गगनयान मिशन
भारत के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन, गगनयान को इसरो का एक महत्वाकांक्षी मिशन कहा जा सकता है, पर यह मिशन 2022 से 2025 तक विलंबित कर दिया गया था। हालांकि, पहला मानव रहित उड़ान परीक्षण अगस्त में शुरू होने की उम्मीद है। इस मिशन की योजना इसरो द्वारा विकसित अंतरिक्ष यात्रा करने वाले मानव-रोबोट व्योममित्र को ले जाने की है। व्योममित्र नाम का यह रोबोट अर्ध-ह्यूमनॉइड है और आगे और पीछे की ओर झुक सकता है।
वहीं व्योममित्र इसरो कमांड सेंटर के साथ निरंतर संपर्क में रहते हुए अंतरिक्ष में विशिष्ट प्रयोग करेगा। गगनयान परियोजना का लक्ष्य 5 से 7 दिनों तक चलने वाले मिशन के लिए तीन सदस्यों के एक दल को 400 किमी की कक्षा में लॉन्च करके भारत की मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता का प्रदर्शन करना है। हिंद महासागर में लैंडिंग के साथ चालक दल की सुरक्षित वापसी एक प्राथमिक उद्देश्य है।
इसरो ने गगनयान परियोजना के लिए कई मील के पत्थर हासिल किए हैं, जिसमें क्रायो स्टेज (सी25) इंजन योग्यता परीक्षण, क्रू एस्केप सिस्टम के स्थिर परीक्षण और एकीकृत मुख्य पैराशूट एयरड्रॉप परीक्षण शामिल हैं। क्रू एस्केप सिस्टम के लिए परीक्षण वाहन भी सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी-शार) में ही तैयार किया गया है।
सूर्य का अध्ययन करेगा आदित्य एल-1
चंद्रयान-3 की सफलता के पश्चात इसरो इस साल अगस्त में आदित्य एल-1 के साथ सूर्य का अध्ययन करने के लिए अपने पहले वैज्ञानिक अभियान की तैयारी कर रहा है। 2015 में लॉन्च किए गए एस्ट्रोसैट के बाद आदित्य एल-1 इसरो का दूसरा अंतरिक्ष-आधारित खगोल विज्ञान मिशन होगा।
अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु-1 (एल1) के आसपास हेलो कक्षा में स्थापित किया जाएगा।
एल1 के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में होने से बिना किसी ग्रहण के सूर्य का निरंतर जांच कर पाना संभव होगा, जिससे सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर उनके प्रभाव के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलेगी। लैग्रेंज बिंदु सूर्य और पृथ्वी जैसे दो-पिंड प्रणाली के गुरुत्वाकर्षण बलों के परिणामस्वरूप होते हैं, जो आकर्षण और प्रतिकर्षण के उन्नत क्षेत्रों का निर्माण करते हैं।
आदित्य-एल1 को पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (पीएसएलवी) रॉकेट का उपयोग करके लॉन्च किया जाएगा। चंद्रयान मिशन के समान, अंतरिक्ष यान को शुरू में पृथ्वी की निचली कक्षा में रखा जाएगा और बाद में ऑनबोर्ड प्रोपलशन का उपयोग करएल1 की ओर प्रक्षेपित किया जाएगा। लॉन्च से एल1 तक की कुल यात्रा का समय लगभग चार महीने होने का अनुमान है।
नासा-इसरो का संयुक्त निसार मिशन
नासा-इसरो एसएआर (एनआईएसएआर) मिशन का उद्देश्य सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) विश्लेषण के माध्यम से पृथ्वी के बदलते इकोसिस्टम, गतिशील सतहों और बर्फ के द्रव्यमान को मापना है। यह संयुक्त मिशन पृथ्वी की सतह में सूक्ष्म परिवर्तनों पर नजर रखकर दुनियाभर में ज्वालामुखी विस्फोट, भूजल आपूर्ति, बर्फ की चादर पिघलने की दर और वनस्पति वितरण में बदलाव की निगरानी करने में सक्षम होगा।
एनआईएसएआर पृथ्वी की सतह में परिवर्तनों का हाई-रिजॉल्यूशन अवलोकन प्रदान करेगा। यह हिमालय जैसे भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों की निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, हर 12 दिनों में आए बदलाव को रेखांकित करेगा, जो भूमि धंसने और भूकंप के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों को पहले ही चेतावनी दे देगा।
$1.5 बिलियन की अनुमानित लागत वाला एनआईएसएआर दुनिया का सबसे महंगा उपग्रह है और दोहरी आवृत्ति पर संचालित होने वाला पहला उपग्रह है। इसका लांच जनवरी 2024 के लिए निर्धारित है। 2,800 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह में एल-बैंड और एस-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) दोनों उपकरण हैं, जो इसे एक दोहरी-आवृत्ति इमेजिंग रडार उपग्रह बनाता है।
मंगलयान-2 भी कतार में
मंगलयान-2, भारत का दूसरा अंतरग्रहीय मिशन और मंगल ग्रह पर दूसरा मिशन होगा, वहीं मंगलयान-2 हाइपरस्पेक्ट्रल कैमरा और एक रडार से सुसज्जित होगा। मंगल ग्रह पर भारत का पहला मिशन, मंगलयान-1 या मार्स ऑर्बिटर मिशन, सफलतापूर्वक ग्रह की कक्षा में पहुंच गया था। लॉन्च वाहन, अंतरिक्ष यान और ग्राउंड सेगमेंट की लागत 450 करोड़ रुपये है, जो इसे एआरएस के लिए सबसे अधिक लागत प्रभावी मिशनों में से एक बनाती है।
शुक्र पर भी कदम रखेगा इसरो
मार्स ऑर्बिटर मिशन की सफलता के बाद, भारत ने शुक्र ग्रह की खोज पर भी अपनी नजरें गढ़ा दी हैं। हालांकि अमेरिका, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और चीन ने भी शुक्र ग्रह के लिए मिशन की योजना बनाई है, भारत का शुक्रयान नामक अस्थायी मिशन, जिसे शुरू में 2024 के लिए योजनाबद्ध किया गया था, सरकार से हरी झंडी ना मिलने के कारण 2031 तक स्थगित किया जा सकता है।
क्या है स्पाॅडेक्स
स्पाॅडेक्स (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट) इसरो का एक और उल्लेखनीय भारतीय प्रौद्योगिकी मिशन है, जो कक्षा में दो अंतरिक्ष यान की स्वायत्त डॉकिंग कर सकेगा। लंबे समय से चल रही इस आंतरिक परियोजना को स्वायत्त मिलन और डॉकिंग की क्षमता प्रदर्शित करने के लिए स्वीकृत 124.47 करोड़ में से 10 करोड़ की फंडिंग बढ़ा दी गई है। एक साथ काम करने वाले कई मॉड्यूल के साथ एक अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण के लिए सफल डॉकिंग आवश्यक है, जिससे भविष्य के मानव अंतरग्रहीय मिशन और कक्षा में अंतरिक्ष यान को ईंधन भरने की सुविधा मिलती है।
हमारा YOUTUBE चैनल- https://www.youtube.com/@VyasMediaNetwork