जनविश्वास बिल में जेल की सजा समाप्त होने से अपराधियों के हौसले होंगे बुलंद
– जनविश्वास बिल लोकसभा में पारित
– विशेषज्ञ बोले- दवाओं की क्वालिटी से समझौता न हो
– देश में 7,000 से अधिक जेनरिक दवाएं बन रहीं
– दवाओं की क्वालिटी में कोताही मरीजों के लिए जानलेवा साबित होगी
– जानकार बोले- दवा सेक्टर को कानून के खौफ के दायरे में रखना जरूरी
जन विश्वास बिल लोकसभा में पारित हो गया। राज्यसभा में इसकी परीक्षा होना बाकी है। इस बिल से सरकार 19 मंत्रालयों से जुड़े 42 कानूनों के 182 प्रावधानों को जेल की सजा से मुक्ति देने जा रही है। जिन अहम कानूनों को अपराध के दायरे से निकाला जा रहा है, उनमें ड्रग्स एवं कास्मेटिक एक्ट, फार्मेसी एक्ट, फूड सेफ्टी एक्ट और प्रिवेंशन ऑफ मनी लाॅन्ड्रिंग एक्ट जैसे अहम प्रावधान भी शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दवाओं की क्वालिटी जैसे अहम मामले में जेल की सजा को खत्म करने से अपराधियों के हौसले बुलंद होंगे।
छोटे मामलों की आड़ में बड़े मामलों को अपराध से मुक्त करना ठीक नहीं है
पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव ने कहा कि ड्रग्स और फार्मेसी के मामले में यह साफ है कि भारत में क्वालिटी कंट्रोल और नियमों के उल्लंघन के मामले से निपटने की लचर व्यवस्था को देखते हुए आपराधिक सजा का डर बरकरार रखा जाना चाहिए। देश में 7,000 से अधिक जेनरिक दवाएं बन रहीं हैं। इसमें आपराधिक कृत्यों की गुंजाइश है। जेल की सजा समाप्त होने से अपराधियों के हौसले बुलंद होंगे। उदाहरण के लिए सिंगापुर में नशीले ड्रग्स के खिलाफ मौत की सजा तक का प्रावधान है। यह सिंगापुर सरकार की ड्रग्स के खिलाफ प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
इसका क्रूरता से कोई लेना-देना नहीं है। दवाओं की क्वालिटी के मामले में कोई भी कोताही मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। ऐसे में इस सेक्टर को कानून के खौफ के दायरे में रखना जरूरी है। यही बात पर्यावरण और सार्वजनिक हित के अन्य कानूनों पर भी लागू होती है। इस विधेयक पर जेपीसी की सुनवाई के दौरान सिविल सोसायटी की राय खुलकर सामने आई।
मौजूदा बिल 42 कानूनों तक ही सीमित
एक समान राय यह दिखी कि कुछ मामलों में जेल की सजा के प्रावधान खत्म करना स्वागत योग्य है जबकि कुछ को कारावास के खौफ से अलग करना गलत साबित होगा। एक स्टडी के अनुसार इस समय 1,536 कानूनों के तहत 70 हजार नियम हैं जिनका पालन करना पड़ता है। मौजूदा बिल 42 कानूनों तक ही सीमित है। बिल पेश करते समय वाणिज्य मंत्री पियूष गोयल ने इस बात का उल्लेख किया था कि कुछ ऐसे छोटे अपराध हैं जिनमें किसी को जेल भेजना इंसाफ नहीं है।
बिल में हुए प्रमुख बदलाव
– भारतीय वन अधिनियम 1927 रू इसके तहत वन्य क्षेत्र से अनधिकृत गुजरने, मवेशी ले जाने, या पेड़ गिराने पर 6 महीने तक की जेल हो सकती है और 500 रुपए का जुर्माना हो सकता है। जनविश्वास बिल के जरिए जेल की सजा हटाई जा रही है। 500 रुपए का जुर्माना कायम रहेगा।
– वायु प्रदूषण नियंत्रण एक्ट रू इस कानून के तहत प्रदूषण नियंत्रित क्षेत्र में औद्योगिक इकाई लगाने पर 6 साल तक की जेल हो सकती है। प्रस्तावित बिल जेल की सजा हटा रहा है और 15 लाख रुपए तक की पेनल्टी जारी रहेगी।
– सूचना टेक्नोलाॅजी एक्ट 2000 रू अभी सेक्शन 66ए के तहत अभद्र संदेश भेजने या गलत सूचना देने पर 2 साल तक की जेल और एक लाख रुपए जुर्माना हो सकता है। इसमें जेल की सजा हटाई जा रही है और 5 लाख रुपए तक की पेनल्टी का प्रावधान किया जा रहा है। किसी की निजी जानकारी का खुलासा करने पर 3 साल की जेल का प्रावधान भी समाप्त होगा।
– ड्रग्स एंड कास्मेटिक एक्ट 1940रू इसमें दो संशोधन हैं जो दवाओं के आयात, निर्माण, वितरण और कास्मेटिक व्यवसाय से जुड़े हैं। किसी केंद्रीय दवा प्रयोगशाला या किसी सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट को बार-बार इस्तेमाल करने के अपराध वाले सेक्शन को हटाया जा रहा है। इसमें 2 साल तक की सजा का प्रावधान है। इसके बजाए 5 लाख रुपए की न्यूनतम पेनल्टी रखी जा रही है। सुजाता राव कहती हैं कि पेनल्टी इतनी होनी चाहिए कि उसे भरना आसान न हो। बेहद घटिया दवा और क्वालिटी में गंभीर खामी के मामले में जेल की सजा के प्रावधान को भी हटाया जा रहा है।
– पर्यावरण संरक्षण एक्ट 1986 रू इस कानून के तहत बेजा प्रदूषक डिस्चार्ज करने के मामले में 5 साल की सजा और 1 लाख रुपए के जुर्माने को बदलकर 1 से लेकर 15 लाख रुपए तक की पेनल्टी में बदला जा रहा है।
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