रक्षाबंधन आज: करीब 200 साल बाद आया दुर्लभ संयोग
– दो दिन मनाई जाएगी राखी, जाने कौनसा दिन शुभ है
– आखिर क्यों मनाया जाता है राखी का त्यौहार?
– भाई-बहन के प्यार का प्रतीक का त्यौहार
हमारे सनातन धर्म में बहुत से तीज-त्यौहार मनाएं जाते हैं। हर त्यौहार का अपने आप में एक अलग ही महत्व और कहानी है। उन्ही में से एक त्यौहार है राखी का त्यौहार…ये त्यौहार भाई-बहनों के अटूट बंधन और प्रेम का त्यौहार है। इस दिन बहने अपने भाई के प्रति प्रेम को रक्षासूत्र में पिरोकर राखी को उनकी कलाई पर बांधती है और उनकी लंबी उम्र की कामना करती है वहीं भाई भी अपनी बहनों की जीवन भर रक्षा करने का संकल्प लेते है। रक्षाबंधन का त्यौहार सावन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।
30 और 31 दोनों दिन मना सकते हैं त्यौहार
हिंदू धर्म में रक्षाबंधन का विशेष महत्व है। वहीं इस साल पूर्णिमा तिथि दो दिन होने के कारण 30 और 31 अगस्त को रक्षाबंधन मनाया जाएगा। इस दिन कई ग्रहों की स्थिति में परिवर्तन होने के साथ कई खास योग और नक्षत्र बन रहे हैं। माना जा रहा है कि ऐसा संयोग करीब 200 सालों के बाद बन रहा है।
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त,भद्रा का समय और शुभ संयोग
30 अगस्त को रात 9 बजकर 2 मिनट के बाद राखी बांध सकते हैं या फिर 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 5 मिनट से पहले। सावन पूर्णिमा तिथि आरंभ- 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 59 मिनट से पूर्णिमा तिथि समापन- 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक।
ऐसे सजाएं पूजा की थाली
किसी भी पूजा में उसमें इस्तेमाल होने वाली थाली का बहुत महत्व है, इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखे कि आपकी थाली में धूप, घी का दीपक होना चाहिए।उसमें रोली और चंदन रखें। साथ ही उसमें अक्षत रखना चाहिए यानी चावल जो टूटा हुआ न हो। अपने भाई का रक्षा सूत्र भी उसी थाली में रखना है,साथ ही साथ उसमें मिठाई भी रखनी है। अगर आपने अपने घर में बाल गोपाल स्थापित कर रखें हैं तो रक्षाबंधन के दिन आपको बाल गोपाल को भी राखी बांधनी चाहिए।
रक्षाबंधन पूजन विधि
रक्षा बंधन के दिन सबसे पहले भाई बहन जल्दी सुबह उठकर स्नान आदि कर,साफ-कपड़े पहनकर सूर्य देव को जल चढ़ाएं।फिर घर के मंदिर में या पास ही के मंदिर जाकर पूजा अर्चना करें।भगवान की आराधना के पश्चात राखी बांधने से संबंधित सामग्री एकत्रित कर लें।इसके बाद मुख्य रूप से चांदी,पीतल,तांबे या स्टील की कोई भी साफ थाली लेकर उस पर एक सुंदर-साफ कपड़ा बिछा लें।उस थाली में एक कलश, नारियल, सुपारी, कलावा, रोली, चंदन, अक्षत, दही, राखी और मिठाई रख लें। सामग्री को सही से रखने के बाद घी का दीया भी रखें।
यह थाल पहले घर में या मंदिर में भगवान को समर्पित करें। सबसे पहले एक राखी कृष्ण भगवान और एक गणेश जी को चढ़ाएं।भगवान को राखी अर्पित कर ऊपर बताए गए शुभ मुहूर्त देख अपने भाई को पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करवाकर बिठाएं।इसके उपरान्त भाई को तिलक लगाएं,फिर राखी यानी रक्षा सूत्र बांधें और इसके बाद उसकी आरती करें। इसके बाद अपने भाई का मिठाई से मुंह मीठा करें।
राखी बांधते वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भाई-बहन दोनों का सिर किसी कपड़े से ढका जरूर होना चाहिए।रक्षा सूत्र बंधवाने के बाद माता-पिता या घर के बड़ों का आशीर्वाद लें।
राखी को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं हैं
माता लक्ष्मी ने राजा बलि को बांधा था रक्षासूत्र – राखी पर्व को लेकर प्रचलित पौराणिक कथा के मुताबिक,माता लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में रक्षासूत्र बांधा था और बदले में उनसे अपने पति भगवान विष्णु को मांगा था। कथा के अनुसार, प्रभु नारायण ने वामन का अवतार लेकर दानवराज बलि के पास पहुंचे और उनसे दान मांगा। राजा बलि ने भगवान विष्णु को तीन पग भूमि दान करने का वचन दे दिया।
भगवान विष्णु ने एक पग से आकाश लोक और दूसरे पग से पाताल लोक नाप लिया और जैसे ही तीसरा पग उठाए तब राजा बलि का घमंड टूटा और उसने अपना सर भगवान विष्णु के सामने रख दिया। तब भगवान विष्णु प्रसन्न होकर राजा बलि से कहते हैं वरदान मांगने को कहा। तब वरदान मांगते हुए राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि प्रभु आप हमेशा मेरे सामने रहे।
इस पूरे वाक्या का पता जब मां लक्ष्मी का लगा तब वह परेशान हो गई और विष्णु को वापस लाने के लिए रूप बदलकर राजा बलि के पास पहुंच गई। वहां उन्होंने बलि को अपना भाई मानते हुए उनके हाथों में रक्षासूत्र बांध दिया। माता लक्ष्मी ने फिर अपने भाई राजा बलि से भगवान विष्णु को मांग लिया। कहते हैं कि इसी दिन से रक्षासूत्र बांधने की परंपरा शुरू हुई।
द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को आंचल का पल्लू फाड़कर अंगुली में बांधा था
रक्षाबंधन से जुड़ी दूसरी पौराणिक कथा के मुताबिक, महाभारत के समय एक बार भगवान कृष्ण की अंगुली में चोट लग गई थी और उसमें से खून बहने लगा था। ये देखकर द्रौपदी जो कृष्ण जी की सखी भी थी उन्होंने आंचल का पल्लू फाड़कर उनकी कटी अंगुली में बांध दिया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार,इसी दिन से रक्षासूत्र या राखी बांधने की परंपरा शुरू हुई। जैसा कि आप सब जानते हैं कि जब द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था तब श्रीकृष्ण ने ही उनकी लाज बचाकर सबसे उनकी रक्षा की थी।
जब शुभ और लाभ को खली थी बहन की कमी
भगवान विष्णु के दो पुत्र हुए शुभ और लाभ। इन दोनों भाइयों को एक बहन की कमी बहुत खलती थी, क्योंकि बहन के बिना वे लोग रक्षाबंधन नहीं मना सकते थे। इन दोनों भाइयों ने भगवान गणेश से एक बहन की मांग की। कुछ समय के बाद भगवान नारद ने भी गणेश को पुत्री के विषय में कहा। इस पर भगवान गणेश राजी हुए और उन्होंने एक पुत्री की कामना की। भगवान गणेश की दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि की दिव्य ज्योति से मां संतोषी का अविर्भाव हुआ। इसके बाद मां संतोषी के साथ शुभ लाभ रक्षाबंधन मना सके।
12 साल बाद अपनी बहन यमुना से मिले थे यम
एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार,मृत्यु के देवता यम जब अपनी बहन यमुना से 12 वर्ष तक मिलने नहीं गये,तो यमुना दुखी हुई और माँ गंगा से इस बारे में बात की। गंगा ने यह सुचना यम तक पहुंचाई कि यमुना उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं।इस पर यम युमना से मिलने आये। यम को देख कर यमुना बहुत खुश हुईं और उनके लिए विभिन्न तरह के व्यंजन भी बनाए।
यम को इससे बेहद खुशी हुई और उन्होंने यमुना से कहा कि वे मनचाहा वरदान मांग सकती हैं। इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान मांगा कि यम जल्द पुनः अपनी बहन के पास आयें। यम अपनी बहन के प्रेम और स्नेह से गदगद हो गए और यमुना को अमरत्व का वरदान दिया। भाई-बहन के इस प्रेम को भी रक्षा बंधन के हवाले से याद किया जाता है।
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