इंदिरा गांधी की हत्या पर झांकी – इतिहास का काला सच
कनाडा में नगर कीर्तन की आड़ में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर झांकी निकली गई जिसका हर तरफ विरोध शुरू हो गया है। इसमें दो सिख गनमैनों (सतवंत सिंह और बेअंत सिंह) को भारत की पूर्व प्रधानमंत्री को गोली मारते दिखाया गया। झांकी में ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख विरोधी दंगों के बैनर भी थे।
4 जून को खालिस्तानी समर्थकों की ओर से निकाले गए करीब 5 किलोमीटर लंबे नगर कीर्तन में यह झांकी दिखाई गई थी। 6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी पर इस झांकी के फोटो-वीडियो पोस्ट किए गए।
झांकी के वीडियो सामने आने के बाद कनाडा में ही इसका विरोध शुरू हो गया है। सोशल मीडिया पर झांकी के वीडियो अपलोड कर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के सुरक्षा सलाहकार इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर एक्शन लेने की मांग के लिए कैंपेन चला रहे हैं।
खालिस्तान आन्दोलन
1947 में विभाजन के समय पंजाब के अन्दर असंतोष फैला हुआ था कुछ सिख लीडर खासतौर पर मास्टर तारा सिंह सिखों को एक अलग कौम मने जाने का प्रचार करने लगे साथ ही पंजाबी सूबा अलग से स्थापित किया जाए.
साल 1929 में मोतीलाल नेहरू के पूर्ण स्वराज की मांग पर शिरोमणि अकाली दल के तारा सिंह ने सिखों के लिए अलग देश बनाने की मांग की थी। भारत की आजादी के समय जब अलग देश की मांग नहीं मानी गई तो भारत में ही सिखों के लिए एक अलग राज्य बनाने की मांग होने लगी। साल 1966 में इंदिरा गांधी ने इस मांग को मानते हुए पंजाब को तीन हिस्सों में बांटते हुए पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ राज्य बना दिए। इसके बाद सालों तक पंजाब को ज्यादा अधिकार देने की मांग होती रही।
80 के दशक में पंजाब में खालिस्तान आंदोलन ने एक बार फिर से जोर पकड़ा। ‘दमदमी टकसाल’ के जरनैल सिंह भिंडरावाला लगातार खालिस्तान आंदोलन को हवा दे जाहे थे। इस बीच साल 1983 में खालिस्तान समर्थकों ने स्वर्ण मंदिर परिसर में पंजाब के डीआईजी अटवाल की हत्या कर दी।
2 जून 1984 को, प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर बात की और “पंजाब के सभी वर्गों से खून नहीं बल्कि नफरत बहाने की अपील की। यह कॉल कपटी थी, क्योंकि सेना पहले से ही स्वर्ण मंदिर पर हमले की तैयारी कर रही थी,
इंडिया आफ्टर गांधी: द हिस्ट्री ऑफ द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी में रामचंद्र गुहा कहते हैं। लगभग पांच दिनों के लिए, भारतीय सेना ने जरनैल सिंह भिंडरावाले को हटाने के लिए भारी तोपखाने, टैंक और हेलीकाप्टरों का इस्तेमाल किया, जो अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के अंदर से खालिस्तान – एक सिख मातृभूमि – की स्थापना की मांग कर रहे थे। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया और स्वर्ण मंदिर में छिपे भिंडरावाला का खत्मा करवा दिया गया।
स्वर्ण मंदिर में हुए खून-खराबे के चलते सिख समुदाय के मन में इंदिरा गांधी के प्रति गुस्सा भर गया। यही कारण है कि आगे चलकर इंदिरा गांधी की उन्हीं के दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने 31 अक्टूबर 1984 को हत्या कर दी। जिसके परिणाम स्वरुप दिल्ली में सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे।
हत्या के बाद का दर्दनाक सच
हत्या के बाद जो हुआ वह बेहद दर्दनाक और क्रूर था। हत्या के अगले चार दिनों तक देश दंगों की आग में झुलसा रहा। देश की राजधानी को इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ा। देशभर में 3000 से ज्यादा सिख मारे गए। गाँधी की हत्या के बाद देश में कई सिख विरोधी दंगे भी हुए। दंगे महीनों तक चले और मृतकों की संख्या हजारों में पहुंच गई। हर तरफ खौफ और मातम का माहौल बन गया। इसके अतिरिक्त, सरकार को लेकर अटकलें सामने आई कि सरकार जानबूझकर कुछ नहीं कर रही थी क्योंकि वे गांधी की हत्या के लिए सिखों से नफरत करते थे।
मध्यप्रदेश पर असर
इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद हुए आक्रोश की प्रतिक्रिया ने 87 से अधिक लोगों की जान ले ली – 22 इंदौर में, जो सबसे ज्यादा प्रभावित था, 12 मुरैना में और व्यावहारिक रूप से राज्य के हर जिले में फैल गया।
इंदौर में, जहां पुलिस ने गड़बड़ी की आशंका जताई थी और इसके लिए तैयारी की थी, वे 31 अक्टूबर को इमली साहिब गुरुद्वारे पर भीड़ के हमले को रोकने में सफल रहे। मल्हारराव होल्कर द्वारा 1754 में निर्मित ऐतिहासिक राजवाड़ा पैलेस, आग से नष्ट हो गया था। साथ ही आस-पास की दुकानों में भी आग लगा दी गई थी, जिसके चलते दमकलकर्मियों को लगभग दो दिनों तक संघर्ष करना पड़ा था।
नफ़रत के बीच ज़ींदा इंसानियत
लोगों की भीड़ घरों और होटलों में घुसकर शराब और घड़ियां से लेकर रेफ्रिजरेटर, कटलरी और बेड तक हर चीज में अपनी मदद करती नजर आई। लेकिन इस नह्रत और हिंसा के दौर के बीच में, विवेक का भी एक अच्छा सौदा हुआ था। जहां, इंदौर में गुरु सिंह सभा के महासचिव प्रीतम सिंह छाबड़ा और उनके परिवार को अपने हिंदू दोस्तों के घर आश्रय मिला। उस समय को याद करते हुए एक सिख ट्रांसपोर्टर इकबाल सिंह ने कहा: “अगर मेरे दोस्तों ने मेरी मदद नहीं की होती, तो मैं यहां आपके सामने नहीं होता।
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