आर्थिक मोर्चे पर चीन को पछाड़ तेजी से आगे बढ़ रहा भारत
-भारतीय बाजार से मिल रहे स्थिर रिटर्न
-चीन के बाजार में 50 प्रतिशत तक की गिरावट
-भारत का वर्क फोर्स दुनिया में अव्वल
-भारत को मौजूदा जियोपॉलिटिकल स्थिति और वैश्विक सप्लाई चेन से मिल रहा फायदा
-वैश्विक कंपनियां चीन से भारत की ओर कर रही रुख
नई दिल्ली। इसी महीने में ही अमेरिका के वित्तीय अखबार द वाल स्ट्रीट जर्नल ने चीन की अर्थ वयवस्था पर अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था कि- चीन अब मंदी की और बढ़ रहा है। चीन में चल रही आर्थिक उथल-पुथल से पूरी दुनिया का ध्यान अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बचाने में लग गया है। वहीं आर्थिक मोर्चे पर चीन को एक और बुरी खबर मिली है।
चीन की आर्थिक हालात को लेकर आ रही खबरों से इस बात को भी बल मिल रहा है कि भारतीय शेयर बाजार कोरोना काल के बाद के दौर में एशिया में निवेश के लिए सबसे बेहतर साबित हो रहा है, जहां साल 2020 के आखिर से भारत के बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स ने लोकल रुपए में सालाना 14 प्रतिशत का रिटर्न दिया है। वहीं एशिया में 1 ट्रिलियन डॉलर यानी की करीब 82 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की इकोनॉमी में जितने भी इंडेक्स हैं, उनमें सेंसेक्स का परफॉर्मेंस सबसे बेहतरीन रहा है।
भारतीय बाजार से मिल रहे स्थिर रिटर्न
अगर भारतीय और चीनी के बाजारों की तुलना करें तो, भारतीय बाजार पिछले तीन साल से अपने निवेशकों को लगातार स्थिर रिटर्न दे रहा है, जबकि चीन में कभी-कभार आने वाली तेजी हमेशा रिटर्न देने में विफल रही है। अमेरिकी डॉलर के मायनों से भी देखें तो भारतीय बाजार सबसे बेहतर परफॉर्म कर रहा हैं। भारत में बढ़ती आर्थिक स्थिरता को इस तरह समझिए की, इसी अगस्त में जहां दुनियाभर की इक्विटी में 5 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई थी, वहीं भारतीय बाजार में महज 2.1 प्रतिशत की ही गिरावट दर्ज की गई थी।
चीन के बाजार में 50 प्रतिशत तक की गिरावट
मई 2021 में चीन में विदेशी निवेश अपने चरम पर था। तब वहां पिछले 12 महीनों में 300 बिलियन डॉलर आए थे। इससे तीन महीने पहले चीन का इंडेक्स भी अपनी अधिकतम ऊंचाई पर पहुंचा था। भारत में भी उस समय निवेश चरम पर था, लेकिन भारतीय निवेश की रफ्तार चीन की रफ्तार का 10वां हिस्सा ही थी। अब हालात बदल चुके हैं। तब से चीन के बाजार 50 प्रतिशत तक गिर चुके हैं। वहीं, भारत में 25 प्रतिशत की बढ़त दर्ज हुई है।
कोरोना ने तोड़ी चीन की कमर
कोरोना महामारी के कारण होने वाली मौतों के मामले में चीन का रिकॉर्ड बाकी दुनिया से बेहतर रहा था। इसकी वजह से चीन द्वारा कोरोना से बचाव के पैमानों की खूब वाहवाही भी हुई थी। उम्मीद जताई जा रही थी कि महामारी के बाद एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बेहतर ग्रोथ करेगी। अर्थशास्त्रियों ने तो यहां तक उम्मीद कि थी की चीन पूरी दुनिया को उसी तरह मंदी से बाहर लाएगा जैसा उसने 2008-09 की वैश्विक आर्थिक मंदी के बाद किया था।
लेकिन जो उम्मीदें चीन से थीं उसमें वह खरा नहीं उतर पा रहा है। वहीं, भारत अब एक वैश्विक बाजार के रूप में उभर रहा है। भारत को मौजूदा जियोपॉलिटिकल स्थिति और वैश्विक सप्लाई चेन में आ रहे बदलावों का फायदा मिल रहा है। पश्चिम के साथ चीन के व्यापारिक तनाव और पश्चिम देशों के मित्र देशों में मैन्युफैक्चरिंग पर जोर ने भारत की स्थिति को और भी मजबूत किया है।
भारत का वर्क फोर्स दुनिया में अव्वल
दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनिया अब भारत में अपने मैन्युफैक्चरिंग प्लांट डाल रही है। यह वैश्विक कंपनियां चीन से भारत का रुख कर रही हैं। इससे पता चलता है कि भारत अपनी विशाल युवा आबादी का फायदा उठाने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
ब्लूमबर्ग के अनुमान के मुताबिक 2020 से 2040 के बीच भारत में सेकेंडरी एजुकेशन हासिल कर चुके 4 करोड़ लोगों का वर्क फोर्स सामने आएगा। वहीं, चीन और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में इसी समय में करीब 5 करोड़ लोग रिटायर होंगे।
युवाओं की अधिक संख्या भारत के सामने बेरोजगारी की चुनौती भी खड़ी करती है, लेकिन साथ ही यह देश के लिए बहुत बड़ा अवसर भी है। भारत के पास एक और मौका यह है कि इसकी इकोनॉमी चीन की तुलना में कंज्यूमर डिमांड से ज्यादा प्रेरित होती है। चीन की ग्रोथ प्रोफाइल अब विकसित देशों जैसी हो रही है, जहां आगे बढ़ने की रफ्तार धीमी है।
भारत में निवेशकों को कम राजनीतिक झटके
केंद्रीय सरकार और आरबीआई के बीच कुछ मसलों पर मतभेद और देश में छोटी-मोटी सांप्रदायिक हिंसा के बावजूद भारत में निवेशकों को राजनीतिक झटके कम लगे हैं। वहीं चीन में शी जिनपिंग के नेतृत्व में निवेशकों पर नियम-कानूनों का शिकंजा ज्यादा सख्त हो गया है।
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