भारत का आदित्य खोलेगा सूरज के राज
– अब सूरज की स्टडी करेगा इसरो
– जापान सूरज तक मिशन भेजने वाला पहला देश
– सूरज के पास मौजूद नासा का एक स्पेसक्राफ्ट
– मिशन सफल रहा तो यह भारत की दूसरी बड़ी उपलब्धि होगी
दिल्ली। आदित्य एल 1 सूर्य की स्टडी करने वाला पहला भारतीय मिशन होगा। ये स्पेसक्राफ्ट लॉन्च होने के 4 महीने बाद लैगरेंज पॉइंट-1 (एल 1) तक पहुंचेगा। इस पॉइंट पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता, जिसके चलते यहां से सूरज की स्टडी आसानी से की जा सकती है। इस मिशन की अनुमानित लागत 378 करोड़ रुपए है। वहीं आदित्य स्पेसक्राफ्ट को एल 1 पॉइंट तक पहुंचने में करीब 120 दिन यानी 4 महीने लगेंगे।
ये 120 दिन 31 दिसंबर 2023 को पूरे होंगे। अगर मिशन सफल रहा और आदित्य स्पेसक्राफ्ट लैग्रेंजियन पॉइंट 1 पर पहुंच गया, तो 2023 में इसरो के नाम ये दूसरी बड़ी उपलब्धि होगी। भारत का आदित्य-एल1 मिशन के जरिए सूरज पर चौबीसों घंटे नजर रखने वाला है । आदित्य के जरिए भारत अंतरिक्ष में स्पेस ऑब्जर्वेटरी स्थापित करेगा ऐसा इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो ) हाल ही में चंद्रयान मिशन के जरिए चांद तक पहुंचा है, वही अब इसरो आदित्य मिशन के जरिए सूर्य के उन राज से पर्दा उठाने वाला है, जिससे अब तक दुनिया अनजान है।
आदित्य-एल1 के जरिए सूरज से निकलने वाले सौर तूफान, कोरोनल मास इजेक्शन जैसी चीजों की निगरानी होने वाली है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अभी तक भारत के अलावा किन-किन देशों ने सूर्य तक मिशन भेजा है, उनका मकसद क्या रहा और मिशन के जरिए क्या हासिल हुआ है।
सूरज तक मिशन भेजने वाला जापान पहला देश
जापान दुनिया का वह पहला देश था, जिसने सूर्य तक पहला मिशन लॉन्च किया। जापान की स्पेस एजेंसी जाक्सा ने ये कारनामा 1981 में किया, जब उसने पहली सोलर ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट, हिनोटोरी (ऐस्ट्रो -ए ) को सूरज तक भेजा। मिशन का मकसद एक्स-रे के जरिए सोलर फ्लेयर्स की स्टडी करना था। जाक्सा ने फिर 1991 में योहकोह (सोलर -ए ) को लॉन्च किया।
1995 में नासा और ईएसए के साथ मिलकर सोहो और 1998 में नासा के साथ ट्रांजिएंट रिजन एंड कोरोनल एक्सप्लोरर (ट्रेस ) मिशन लॉन्च किया गया। 2006 में हिनोडे (सोलर -बी ) लॉन्च किया गया, जो एक सोलर ऑब्जर्वेटरी की तरह सूर्य का चक्कर लगा रहा है। इस मिशन का मकसद सूर्य से पृथ्वी पर होने वाले प्रभाव को समझना है।
अमेरिका ने भेजे सबसे ज्यादा मिशन
सूर्य तक मिशन भेजने वाले देशों में अमेरिका सबसे आगे है। अमेरिका ने कई सारे मिशन को सूर्य तक भेजा है। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि उसने कई मुल्कों के साथ भी मिशन को अंजाम दिया है। इसमें सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाला मिशन पार्कर सोलर प्रोब है, जिसे 2018 में लॉन्च किया गया। इसके अलावा सूर्य पर निगरानी के लिए पिछले चार दशक में ढेरों मिशन लॉन्च किए गए हैं। कुछ को मिलकर लॉन्च किया गया है, जबकि कुछ नासा ने खुद ही लॉन्च किए हैं।
दिसंबर 1995 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा , यूरोपियन स्पेस एजेंसी (इसए ) और जापान की जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जाक्सा ) ने साथ मिलकर श्सोलर एंड हीलियोस्फेरिक ऑब्जर्वेटरीश् (सोहो ) मिशन लॉन्च किया। सोहो के जरिए सूर्य के गर्म आंतरिक हिस्से से लेकर इसकी सतह की स्टडी की जा रही है। सूर्य के तूफानी वातावरण पर भी सोहो के जरिए ही निगरानी की जाती है।
नासा ने अगस्त 2018 में पार्कर सोलर प्रोब लॉन्च किया। 2021 में पार्कर स्पेसक्राफ्ट सूरज के ऊपरी वायुमंडल से गुजरा। नासा की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, ये पहली बार था, जब कोई स्पेसक्राफ्ट सूरज के इतने करीब से गुजरा हो। इस मिशन के जरिए सूरज की सबसे ज्यादा करीब से निगरानी की जा रही है। इस मिशन का मकसद सूरज से निकलने वाले सौर तूफानों और सोलर कोरोना को गर्म एवं तेज करने वाली ऊर्जा का पता लगाना है।
चीन का मिशन सूरज
चीन ने भी पिछले कुछ सालों में सूर्य की ओर ध्यान देना शुरू किया है। 2019 में चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (सीएस) ने स्पेसक्राफ्ट फॉर हाई एनर्जी सोलर फिजिक्स (एससएचईएसएसपी) के तौर पर एक छोटी सैटेलाइट को लॉन्च किया। इसे सूर्य के एक्स-रे और गामा रे जैसे हाई-एनर्जी वाले रे की स्टडी करने के लिए डिजाइन किया गया था। इसके जरिए चीन ने सूर्य के कई राज खोले।
वही चीन धीरे-धीरे स्पेस सेक्टर में आगे बढ़ता जा रहा है। बीजिंग ने 8 अक्टूबर 2022 को एडवांस्ड स्पेस-बेस्ड सोलर ऑब्जर्वेटरी (एएसओ-एस ) को लॉन्च किया। चीन इस मिशन के जरिए सूरज के वातावरण की स्टडी कर रहा है। वह यह समझने की कोशिश कर रहा है कि कोरोना, क्रोमोस्फेयर और फोटोस्फेयर जैसी चीजें किस वजह से हो रही हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि चीन सोलर स्पेस टेलिस्कोप (एसएसटी ) भी लॉन्च करने वाला है। इसे 2030 तक लॉन्च किया जाएगा, ताकि सूर्य की और अच्छे से स्टडी की जा सके।
यूरोप ने अब कितने मिशन भेजे?
अक्टूबर 1990 में ईऐसए ने सूर्य के रुवों के ऊपर और नीचे अंतरिक्ष के वातावरण की स्टडी करने के लिए यूलिसिस मिशन लॉन्च किया। नासा और जाक्सा के सहयोग से लॉन्च किए गए सौर मिशनों के अलावा, ईऐसए ने अक्टूबर, 2001 में प्रोबा -2 लॉन्च किया। प्रोबा -2, प्रोबा सीरीज का दूसरा मिशन है। प्रोबा -1 मिशन के जरिए ईऐसए को जो जानकारियां हासिल हुईं, उसके आधार पर ही प्रोबा -2 को लॉन्च किया।
प्रोबा-2 को चार एक्सपेरिमेंट करने हैं, जिसमें से दो सूर्य की निगरानी से जुड़े हुए हैं। सूर्य तक इन मिशन के अलावा यूरोपियन स्पेस एजेंसी प्रोबा -3 मिशन को 2024 में लॉन्च करने वाली है। इसके अलावा 2025 में स्माइल मिशन लॉन्च होगा। यूरोप के अधिकतर देश यूरोपियन स्पेस एजेंसी के अंतर्गत ही काम करते हैं। हालांकि, जर्मनी जैसे कुछ देशों ने अमेरिका के साथ मिलकर खुद के मिशन भी लॉन्च किए हैं।
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